Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पुत्र का उल्लेख अवश्य किया है, जिसके अनुसार पत्नी का नाम सावित्री था, 18 उसी की कोख से उदयराज नामक एक पुत्र हुआ था। 19 रइधू के यहाँ जिस समय उदयराज का जन्म हुआ, उस समय वे"णेमिणाहचरिउ' ग्रन्थ की रचना में संलग्न थे।20 रइधू की जाति :
कविवर रइधू ने माता-पिता के नाम के सदृश ही जाति का भी स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने अपने आपको पदमावती पुरवाल जाति के सुवंश रूप आकाश के लिए चन्द्रमा के समान, 21 पद्मावती पुरवाल कुल रूपी कमल के लिए दिवाकर के समान, 22 पद्मावती परवाल-वंश में अग्रणी, 23 पदमावती परवाल वंश का उद्योत, 24 पद्मावती पुरवाल वंश का कुलतिलक, 25 आदि विशेषणों से युक्त कहा है, इससे कवि की जाति पद्मावती पुरवाल ही सुनिश्चित होती है। रइधू किस आम्नाय के थे :
महाकवि रइधू काष्ठासंघ माथुर - गच्छ की पुष्करगणीय शाखा से सम्बद्ध थे।26 निवास स्थान :
कवि या लेखक अपनी कृतियों के माध्यम से सम्पूर्ण जगत के प्राणियों को अपना बना लेता है क्योंकि काव्य व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि समष्टि के लिए होते हैं, अतः कभी-कभी किसी कवि को एक स्थान विशेष की परिधि में बाँधना भी सम्भव नहीं होता या वह स्वयं भी एक स्थान विशेष से बँधना नहीं चाहता। रइधू के ऊपर भी उक्त कथन लागू होता है, क्योंकि उन्होंने भी अपने
इह रइधू कइ तोवउ वि धर। ।। पउमचरिंठ 12/27:11-12 1B मेहेसरचरिउ 13:873 19 पुण्णासत्र. 73/13:7, वित्तसार 7/141, जसहरचरित 4/18/17 इत्यादि 20 उदयराज्ञ - जण जि रइबर। सिरि अरिट्टणेमिह जिणचरिंज।
अरिट्ठणेभि. 14/27/12 2] पुण्णासव. 13/13/6-7 22 सम्मइ 10128:12 23 पउमचरिङ 1:417 24 जसहरग्टि 4116 25 सिरिंबालम्हि 20:25:18 26 (क) तीर्थकर महावीर, और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड 4, पृ. 199
(ख) रइध साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ. 4]