Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 243
________________ देव चार निकाय के होते है297 भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक298। अब यहाँ उन चारों प्रकार के देवों का वर्णन किया जा रहा है भवनवासी का अर्थ : जिनका स्वभाव भवनों में निवास करना है, वे भवनवासी कहलाते है।299 भवनों का स्थान : ___ 'रत्नप्रभा के पंकबहुल भाग में असुर कुमारों के भवन हैं और खर पृथ्वी भाग में ऊपर और नीले एक-एक हजार योजन छोड़कर शेष नौ प्रकार के कुमारों के भाग 350 . . . . . . भवनवासी देवों के भेद : भवनवासी देव दस प्रकार के होते हैं : 1.असुर कुमार, 2. नागकुमार,3. द्वीप कुमार, 4. उदधि कुमार. 5. विद्युत् कुमार, 6. स्तनित कुमार, 7. दिक् कुमार, 8. हेमकुमार, 9, अग्निकुमार, 10. वायु कुमार 301 भवनवासी देवों के श्री चिह्न : भवनवासी देवों के मुकुट में क्रमश: चूडामणिरत्न, फण, गरुड़, गज, मकर, स्वस्तिक, बज्र, सिंह, कलश और धोड़े ये श्री302 चिह्न होते हैं। भवनवासियों के भवनों की कुल संख्या : भवनवासी देवों के भवनों की कुल संख्या सात करोड़ एवं बहत्तर लाख है। वहाँ के जिन भवनों की संख्या भी उतनी ही है।303 297 "देवाश्रतुणिकाया'' | तत्वार्थसूत्र 4:11 298 सर्वार्थसिद्धि : पूज्यपाद, संस्कृत टीका, अध्याय-- 4, सूत्र.1 293 "भवपेषु वमन्तीत्येवंशीला भवनवासिन : ||- सर्वार्थसिद्धि, संस्कृत टीका सं. 4617. 178 300 लही ए. 178 301 अमरतुमार पाय दाबोबहि. विन-णित दिसनी मागह। हेमकुम र वाउ.. बलर थिर भवागवामि दहए जाहि किर || रइधु : पास. 5/20:23 302 चुडामणि फणि गरुट-गक भयर बटमाणं वज हरि-कलसंपु - तुरउ ए जागाह. 'भावाणाहं सिरचिहइ माणहु ॥ वहीं 55205-6 303 सनकोडिवाहत्तरिलक्खइँ, नेत्तिबाई लगभवणहु मंखहिं ।। वहो 5/2014 astesexSTARAISISTS 219kxsResesxesasrestess

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