Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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तत्कालीन विशाल नगर प्रकृति से पूर्णतया परिवृत थे। पोदनपुर नगर का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है कि - "जहाँ वृषण ढिक्कारते हुए धूमते हैं
और गायों के साथ धान्य चरा करते हैं। जहाँ पर घना दूध देने वाली मैसें हैं, जहाँ पर फलों एवं फूलों से युक्त श्रेष्ठ उद्यान हैं जहाँ पुंड्र (गनों) के खेत रस बहाते रहते हैं जहाँ के उपवन फलों से झुक ये हैं।''51 ___ कमठ जिस वन में तपस्या हेतु पहुँचा, उस वन का वर्णन करते हुए कवि कहता है - "उद्विग्न चित्त वह (कमठ) गिरि, कन्दरा एवं घने वृक्षों से युक्त मृग-कणों से सुशोभित, क्रुद्ध सिंहों से युक्त खेचरों एवं देवों के लिए सुखदायक वन में पहुँचा -
उज्वेइय चितइ सो वणि पत्तउ - गिरिकंदरभूरुहधणऊँ ।
मिययणसोहिल्लल हरि, कोहिलउखेयर- सुरहँ सुहावणउँ 152 प्राकृतिक सम्पदा :
प्राकृतिक सम्पदायें किसी भी देश का प्रगति का मूलभूत कारण होती हैं। प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन कर आर्थिक जीवन को सुदृढ़ किया जा सकता है। जन-जीवन का स्वस्थ होना भी प्रकृति पर ही निर्भर करता है। "पासणाहचरिंउ" में रइधू ने भी इस सम्पदा को समाहित किया है, जो निम्न प्रकार है : वन:
"पासणाहचरिठ" में निम्नलिखित वनों के नाम आये हैं :
भद्रशाल वन, नन्दन वन, सोमनस वन, पाण्डव वन53 और सल्लको वन541 पर्वत :
"पासणाहचरित" में निम्रलिखित पर्वतों के नाम आये हैं :
51 पास. 6.1 52 बही, घत्ता 110 53 पास, 219 54 बही 6/9
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