Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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घीमान दोनों रहते थे। सुख, समृद्धि एवं यश के लिए वह रत्नाकर के समान आकर था, बुध जनों के समूह के लिए वह इन्द्रपुरी था तथा जनमन को आकर्षित करने वाले सर्वश्रेष्ठ नगरों का वह गुरु था।86 उसका राजा डॉगरेन्द्र कुबेर के समान प्रचुर धन का धनी था।87 काशी देश के वर्णन के प्रसङ्गम में कहा गया है कि वह लक्ष्मी के घर के समान था। वहाँ शुभ्र वर्ण वाले गोसमूह धान्यकण चरा करते थे।88 सुरम्य देश में विपुल आराम वाले ग्राम बसे थे। वह वृषभ ढिक्कराते हुए घूमते थे और गायों के साथ धान्य चरते थे। वहाँ घना दूध दें वाली भैसें भी थीं, फल और फूलों से युक्त उद्यान थे, पुंड के खेत रस के बहाते थे, उपवन फलों से झुके थे तथा अतिशोतल जल से पृरित परिता औ सरोवर व्रतों को पालने वाले शान्त प्रकृति वाले व्यक्तियों के समान थे।
86 पासणाचा? 3 113 87 वहीं 11 8: नहीं । H9 वही 6]