Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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सवार योद्धाओं के सिर पर मुकुट बँधा रहता था। वे अपने शरीर को कवच द्वारा सुरक्षित रखने का यल करते थे तथा उनका प्रमुख अस्त्र धनुष-बाण होता था पदाति सेना5 :
हस्ति, अश्व तथा रथमय सेना के आगे पदाति सेना चलती थी।66 "पासणाहचरिउ" में पदाति सेना की अत्यन्त वीरता का वर्णन किया गया हैप्रचुर धूलि से धूसरित शरीर वाले वे धीर पुरुष मार्ग में ऐसे जा रहे थे, मानो पर्वत ही हों।57 सैनिकों के द्वारा खींची गई तीक्ष्ण तलवारें साक्षात् यमराज की जीभ के समान प्रतीत होती थीं 8 समर्थ पदातिगण आह्वान करते थे और दोनों
ओर की सेनाओं के योद्धागण थककर मरते थे। दौडते हए किसी को छाती में बीध दिया गया, मानो स्वामी के दान का फल ही सफल हो गया हो, शक्ति नामक अस्त्र के प्रहार से कोई-कोई भट ऐसा काट दिया गया, मानो भग्न शरीर से ही अपना जीवन धारण कर रहा हो|70 अस्त्र-शस्त्र :
युद्ध के अवसर पर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। इपासणाहचरिउ' में कविवर रइधु ने प्रसंगवश निम्नलिखित अस्त्र-शस्त्रों का उल्लेख किया है
करवाल,71 खग्ग,72 असि7 (तलवार), छुरिय74 (छुरी), फरिस75 (फरसा), कुन्त कुदालु (कुदाल), कुहाड़ी78 (कुल्हाड़ी), फालु
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'परागचरित 17/7A रइभू : पास. 3:7-9 वराङ्गचिरत 17:18 पास. 36-6 जही 37.1 वही 3/7-9 वहीं 3/8:4-5 वहीं 3/2,14 वहीं 3/7 वही 56 वही 5/6
वही 5/6 76 वही 56 77 वही 5/6 78 वही 56 79 वहीं 5:6
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