Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 224
________________ धार्मिक कर्मों को स्वर्ग का कारण कहा गया है। यह जानकर शुद्ध भावनापूर्वक जिन भगवान का चिन्तन करो और उनकी प्रतिमा का अहर्निश च्यान करो।162 दान163 : अपने तथा पर के उपकार के लिये अपनी वस्तु का त्याग करना दान है।164 दान चार प्रकार का होता है औषधिदान, ज्ञानदान, अभयदान और आहारदान165 दान की प्रेरणा देते हुए आचार्य पद्मनन्दि ने लिखा है किसत्पात्रेषु यथाशक्ति, दानं देयं गृहस्थितैः । दानहीना भवेत्तेषां, निष्फलै व गृहस्थता।।168 अर्थात् गृहस्थ श्रावकों को शक्ति के अनुसार उत्तम पात्रों के लिए दान अवश्य देना चाहिए, क्योंकि दान के बिना उसका गृहस्थाश्रम निष्फल ही होता षोड़श भावनायें167 (सोलह कारण भावनायें) षोडश भावनायें निम्नलिखित हैं1. दर्शन विशुद्धि: जिनोपदिष्ट निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग में रुचि दर्शन विशुद्धि है।168 2. विनय सम्पन्नता: सम्यग्ज्ञान आदि मोक्ष के साधनों में तथा ज्ञान के निमित्त गुरु आदि में योग्य रीति से सत्कार-आदर आदि करना तथा कषाय की निर्मक्ति करना, विनय सम्पन्नता है।169 162 रइधू : 'पास. 6.78 163 वही 1/3 164 "अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम्।"-तत्वार्थसून 7/38 165 पं. द्यानतरायकृत दशलक्षणपूजा की जयमाला (त्याग सम्बन्धी पद) 166 पद्मनन्दिपंचविंशत्तिका : उपासकसंस्कार, शोक 31 167 रइधू : पास. 215 168 तत्त्वार्थवार्तिक 6/24 की व्याख्या, वार्तिक नं. । 169 वही वार्तिक नं.2, .sesxesesexsasrushes 200 kusheszxsrusisxestess

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