Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 231
________________ नरक वर्णन ( अधोलोक) प्रथम घम्मा नरक : . तिर्यक लोक के मध्य में एक सहस्र योजन प्रमाण कनकाचल का तल है। उसके नीचे धम्मा नामक प्रथम नरक है, जिसके तीन भाग हैं। प्रथम भाग का नाम खर पृथ्वी है, जो सोलह योजन मोटी है। नौ प्रकार के भवनवासी देव वहाँ रहते हैं और मनोवाछित सुखों को भोगते हैं। सात प्रकार के रसिक व्यन्तर देव भी वहाँ सुख भोग भोगते हुए रहते हैं।198 पकबहुल नामक दूसरा भाग भी चौरासी सहस्र योजन मोटा है। वहाँ एक प्रकार के अस् कुमार आतिक देवों का निवास स्थान है।199 तृतीय तोय 'बहुल नामक भाग भी अस्सी सहस्र योजन मोटा है। दु:खों में परिपूर्ण उन नरक भागों में नारकी लोग निवास करते हैं और एक दूसरे को प्रताड़ित करते रहते हैं।200 प्रथम ना में प्रसार हैं20। तभ्यः लोप :: Tो हरिपूर्ण विन : प्रकार के हैं-इन्द्रक, श्रेण E ikणक । यहाँ पर आपके आभन नारकी जीय निवास 13 ___PITE : मादा अंगुल अधिक तीन हाथ है। : 1 स्थान में पक रहना है 22044 प्रथम रक में का आ पमा एक सरगर वं जघन्य आय दस 05 प्रथम नरक की पृथ्वी का नाम्। रत्नप्रभा है।206 जिसकी प्रभा, चित्र आदि रत्नों को प्रभा के समान है, वह रल प्रभा भूमि है।207 __ --- --- -. . - - * : पान. 5.15 199 हो. धा- 200 ही 5:16/1.3 201 बहो 5/16/7 202 वही 5/16/11 203 वही 5/16:15-16 204 वही, घत्ता-87 205 वही 5/07/4,8 206 वहीं, घत्ता -88 207 इ. सवार्थसिद्धि : पूज्यपाद : पं. फूलचन्द्र शास्त्री व्याख्या टीका, 367 पृ. 147 aslesesesxesxxshashess) 207CSTMesxesxesxesesxes

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