Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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आयु दुखों से पृणं दस सागर होती है।251 इस नरक पृथ्वी का अपर नाम धूमधा है।252 जिसकी प्रभा धुंवा के समान है, वह धूमप्रभा भूमि है।253
पाँचवें नरक में अवधिज्ञान का प्रमाण गणधरों ने दो कोस माना है।254 दुखों के सङ्गम सिंह इस नरक में उत्पन्न होते हैं 255 इस नरक में तीव्र शीत
और उष्णता है।256 तीव शीत और उष्णता के कारण जीव अत्यन्त दुखों को भोगते हैं। पांचवें नरक से निकल कर जीव ( मनुष्य होकर) व्रत तप करता है, किन्तु वहाँ भी वह मोक्ष प्राप्त नहीं करता।257 षष्ठम मघवी नरक :
छठवें नरक का नाम मघवी कहा गया है। इसमें तीन नरक प्रस्तार तथा पाँच कम एक लाख अर्थात् 95000 बिल हैं। ये बिल इन्द्रक. श्रेणीबद्ध एवं कुसुमप्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं तथा यहाँ पर नाना प्रकार के अमित नारकी औव निवास करते हैं।25B इस नरक के जीवों का देह प्रमाण एक सौ अड़सठ दण्ड एवं एक सौ चवालीस अंगुल अधिक बहतर हाथ है।259 इस नरक के नारकियों की उत्कृष्ठ आयु बाईस सागर260 तथा निकृष्ट आयु सत्रह सागर होती है।61 इस नरक की पृथ्वी का अपर पाम तग:प्रभा है।262 जिसकी प्रभा अन्धकार के समान है, वह तम:प्रभा भूमि है।263 छउवें नरक में अविधज्ञान का क्षेत्र डेढ़ कोस पर्यन्त माना गया है।।64 स्त्री, मत्स्य इसी नरक में
252 पास 5179 252 व्ही. पत्ता 88 253 सर्वार्थसिद्धि : पं. फूलचन्द्र शास्त्री, टोका, हिन्दी व्याण्ड्या -367. पृ. 147 251 पास. 5/18:4 255 वहीं 5/18/8 256 वही 5/19/2 257 वही 5/18/13 255 वहीं 5:16 259 वही 5:17 260 वहीं 5:15 26] वहीं 5:17:10 262 बही घना-88 26- साध सद्रि पं. फलचन्द शास्त्री. टोका हिन्दी व्याख्या, पृ. 147 264 पास. 514:5