Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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प्रास करता है तथा पुनः नरक में आगमन नहीं होता37 चतुर्थ नरक अजनानाम वाला है, इसमें सात नरक प्रस्तार और दस लाख बिन हैं। ये बिल भी तीन प्रकार के होते हैं इन्हक, श्रेणीबद्ध और कुसुमप्रकीर्णक। इनमें नाना प्रकार के अमित नारकी जीव निवास करते हैं।238 इस नरक में जीवों की देह का प्रमाण बयालीस दण्ड एवं छत्तीस अंगुल अधिक अठारह हाथ है।239 इस नरक के नारकियों की उत्कृष्ट आयु का प्रमाण दस सागर240 तथा निकृष्ट आयु का प्रमाण सात हजार वर्ष है।241 इस नरक की पृथ्वी का अपर नाम पङ्कप्रभा है।42 जिसकी प्रभा कीचड़ के समान है. वह पङ्कप्रभा भूमि है।243 इस नरक के नारकियों का अवधिज्ञान प्रमाण हाई कोस है।244 इसमें विहङ्गम जन्म लेते हैं|245 चतुर्थनरक से लौटकर जीव मोक्ष पद पाता है किन्तु नियम से तीर्थङ्कर नहीं होता 46 इस नरक में तीन उष्णता है, किन्तु पापवर्श जीव उस सब को । सहता है।247 पञ्चम अरिष्टा नरक :
पञ्चम नरक अरिष्टा नाम वाला कहा गया है। इसमें पाँच नरक प्रस्तार तथा तीन लाख बिल हैं। वे बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध एवं कुसुमप्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं, जहाँ पर नाना प्रकार के नारकी जीव निवास करते हैं PAB इस नरक के जीवों का देह प्रमाण चौरासी दण्ड एवं बहनर अंगुल अधिक छत्तीस हाथ है।249 इस नरकके नारकियों की उत्कृष्ट आयु सत्रह सागर250 तथा निकृष्ट :
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-..237 पास.5:18/15 238 वही5/16 239 वही 5/17:2 240 वहीं 5/17.5 241 वही 5/17/8 242 पास. पत्ता- 88 243 सर्वार्थसिद्धि, व्याख्या-367.1. 147 244 पास. 5/18/4 245 वहीं 5/788 246 "चस्थिहिं आदिउ सिवपउ पावइ, तित्थयर विणउणिय भावइ।" वही 5:18:14 247 बही 5/19:1 248 वही 5/16 249 वही 5/17 250 वहीं 5:17.5
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