Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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शरीर अर्थात् शरीर के अगों की बनावट, स्थिति चारों तरफ से ठीक होना, 10. . वज्रवृषभनाराचसंहनन। केवलज्ञान के दस अतिशय187 : 1. एक सौ योजन तक सुभिक्ष अर्थात् जहाँ केवली भगवान रहते हैं, उससे चारों
ओर सौ. सौ योजन तक सुभिक्ष होता है। 2. आकाश में गमन, 3. चार मुखों का दिखाई पड़ना, 4. अदया का अभाव, 5. उपसर्ग का अभाव, 6. कवल (ग्रास) आहार का न होना, 7. समस्त विद्याओं का स्वामीपना, 8. केशों और नाखूनों का न बढ़ना, 9. नेत्रों की पलक नहीं टिमकाना, 10. छाया रहित शरीर। देवकृत चौहह अतिशय188 : 1. भगवान की अर्द्धमागधी भाषा का होना। 2. समस्त जीवों में परस्पर मित्रता होना। 3. दिशा का निर्मल होना। . 4. आकाश का निर्मल होना। 5. सब ऋतु के फल फूल धान्यादिक का एक ही समय फलना। 6. एक योजन तक की पृथ्वी का दपर्णवत् निर्मल होना। 7. चलते समय भगवान के चरण-कमल के तले स्वर्णकमल का होना। 8. आकाश में जय-जय ध्वनि का होना। 9. मन्द सुगन्ध पवन का चलना। 10. सुगन्धमय जल की वृष्टि होना। 11. पवन कुमार देवों द्वारा भूमि को कण्टक रहित करना।
187 रइधू : पास., घत्ता 67 एवं 4/17 188 वहीं 4/17
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