Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
View full book text
________________
सत्यार्थ अथवा मोक्ष के कारणभूत देव-शास्त्र और गुरु का आठ अंग सहित, तीन मूढ़ता रहित, आठ मद रहित श्रद्धान करना, सम्यग्दर्शन कहलाता है।146 जिनशासन में संवेग एवं निर्वेद, निन्दा तथा आत्मगर्हा, उपशम तथा बहुभक्ति वात्सल्यता एवं अनुकम्पा;147 इन गुणों से सम्यक्त्व होता है।148 सम्यग्दर्शन के लक्षण :
'पासणाहचरिउ' में कविवर रइधू ने सम्यग्दर्शन के लक्षणों का विस्तृत वर्णन करते हुए लिखा है कि-"अरहन्त ही देव हैं अन्य कोई नहीं। वह अठारह दोषों से रहित, निष्काम और इन्द्रियरूपी गजसमूह का दलन करने के लिए सिंह के समान हैं। उस केवलज्ञान लोचन देव को प्रणाम करो, जिन्होंने लोकालोक के भेद को जान लिया है और जो परिग्रह रहित निर्ग्रन्थ साधु हैं, जिन्होंने काम के तीव्रदाह को शान्त कर दिया है, स्वाध्याय एवं ध्यान में अहर्निश प्रवीण हैं, मास अथवा पक्ष में पारणा लेने के कारण वाणाप हो गये हैं, जिन्होंने मोह, माया एवं प्रमाद को छोड़ दिया है, उनके चरणों में भी भावपूर्वक प्रणाम करो। दया धर्म के प्रति अनुराग करो, जो चिरकृत पाप कर्म का नाशक है। मोक्ष प्राप्ति के लिए निर्ग्रन्थ मार्ग छोड़ अन्य मार्ग नहीं। धन्य दशलक्षण धर्म का पालन करो। इस प्रकार से सम्यक्त्व के लक्षण कहे गये हैं. भव्यजनों को इनकी मन में दृढ़ भावना करना चाहिए।149 सम्यग्दर्शन के आठ अंग150 :
(1) निः शङ्का : जिन कथित देव-शास्त्र-गुरु के स्वरूप में शङ्का न करना।
(2)निः काङ्क्षा : सांसारिक सुख की इच्छा नहीं करना।
(3) निर्विचिकित्सा : धर्मात्माओं के शरीर में ग्लानि न करते हुए उनके गुणों में प्रीति रखना।
.
146 रनकरण्डश्रावकाचार 14 147 रइथू : पास., पत्ता-73 148 वहीं 5/3 149 वही 5/3 150 यही 512
EasRestasesesxesesesesi 196 sxsesesesxesxsxes