Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पंचेन्द्रियों का निरोध :
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कणं ( श्रोत्र) ये पाँच इन्द्रियाँ हैं।101 इन इन्द्रियों की विषयों के प्रति प्रवृत्ति रोकना ही इन्द्रिय निरोध कहलाता है। इन्द्रिय जनित सुख बिजली के समान चंचल माना गया है।102 पंचेन्द्रियों के (आसक्ति पूर्वक) रसास्वादन से विकार उत्पन्न होता है।103 छह आवश्यक:
समता, स्तुति, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्गः ये छह आवश्यक हैं।104
समता:
किसी भी प्राणी के प्रति द्वेष न रखकर सदा आत्म स्वभाव की ओर दृष्टि लगाना।
स्तुति :
पूज्य पुरुषों (तीर्थङ्करों) के गुणों की प्रशंसा करना, स्तुति करना। वन्दना :
सिद्ध के स्वरूप की प्राप्ति के लिए तीर्थङ्करों की श्रद्धा भक्तिपूर्वक वन्दना करना। प्रतिक्रमण:
प्रमाद से लगे हुए दोषों को निन्दा एवं आलोचनापूर्वक उनसे अरुचि या ग्लानि करना। प्रत्याख्यान : ___ जिन दोषों से ग्लानि हुई है, उनका आगे के लिए त्याग करना।
101 तत्वार्थसूत्र 2:19 102 ''इंदिय-सुह तड़ि-तरलत्तणड।"-रइथू: पास. 3/14 103 वही 3/20 104 इदमावश्यकषट्कं समतास्तधबन्दनाप्रतिक्रमणं । प्रत्याख्यानं वपुषो व्युत्सर्गश्चेति कर्तव्यम्।।
आ. अमृतचन्द्र पुरुषार्थ सिद्धयुपाय 9:201