Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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ईर्यासमिति :
नेत्रगोचर जीवों के समूह से बचकर गमन करने वाले मुनि के प्रथम ईर्यासमिति होती है, यह व्रतों में शुद्धता उत्पन्न करती है। 93
भाषा समिति :
सदा कर्कश और कठोर वचन छोड़कर यलपूर्वक प्रवत्ति करने वाले यति का धर्म कार्यों में बोलना भाषासमिति है 94
एषणासमिति :
शरीर की स्थिरता के लिए पिण्ड शुद्धि पूर्वक मुनि का आहार ग्रहण करना एषणा समिति है
आदान निक्षेषण समिति :
देखकर योग्य वस्तु का रखना और उठाना आदाननिक्षेपण समिति है 96 उत्सर्ग समिति :
इसे प्रतिष्ठापनसमिति भी कहते हैं। प्रासुक (जीव-जन्तु से रहित ) भूमि पर शरीर के भीतर का मल-मूत्र छोड़ना उत्सर्ग समिति है
गुप्ति
:
विषय सुखाभिलाषा रहित मन, वचन, काय की यथेष्ट प्रवृत्ति का रोकना गुति है | 98 अज्ञानी जी करोड़ों जन्मों में तप करके जिसने कर्मों को दूर करता है उतने कर्मों को ज्ञानी (आत्मज्ञानी) जीव अपने मन, वचन और काय इन तीनों को वश में करके क्षण भर में नष्ट कर देता है 99 इन गुसियों से योगों का निरोध होता है। 100
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हरिवंश पुराण 2/122
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वही 2/123
95 वही 2/124
96
वही 2/125
'वही 2/125
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98 तत्त्वार्थसूत्र 9/4 छहढाला 2/19
99
100 रइधू पास 3 / 21
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అట్టట్టడ 1875/5/5/esexx