Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पार्श्व ने भी की थी। इस युद्ध का वर्णन कवि ने इस तरह किया है, मानो वह प्रत्यक्षदर्शी रहा हो। पाठक भी इस वर्णन को पढ़कर वीररस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते। वर्णन इस प्रकार है -
कालयवन एवं राजा रविकीर्ति (अर्ककीर्ति) क्रोधावेश में आकर रण में प्रविष्ट हो गये और दर्प से उदभट वे दोनों ही राजा जय श्री के हेत परस्पर में भिड़ गये।95 अत्यन्त तीक्ष्ण तलवारें खींच ली गई, मानो यमराज प्रत्यक्ष ही जीभ दिखा रहा हो! बीस पार्श्व हिण भाकन नेसन मानकर कोई भी योद्धा शस्त्र धारण नहीं कर पा रहा था। प्रचण्ड घोड़ों के द्वारा गजयुथ खण्डित कर दिये गये। बलशाली योद्धा परस्पर में (दोनों ओर के) एक-दूसरे को खण्डित करने लगे। किसी का हाथी, तो किसी का घोड़ा विदीर्ण हो गया। किसी के द्वारा किसी का शीर्ष हो छिन्न-भिन्न हो गया। किसी ने अञ्जन पर्वत के समान कान्ति वाले मदोन्मत्त हाथी को मार गिराया. तो किसी ने सागर की चञ्चल तरंग के समान घोड़े को सुभट सहित मार गिराया। चन्द्रनख नामक शस्त्र के द्वारा उत्तम धवल वर्ण के छत्र काट दिये गये, उससे ऐसा लगने लगा मानो रणभूमि में कमल (सफेद) ही खिल उठे हों। फहराती हुई ध्वजायें काट दी गई, उससे ऐसा प्रतीत होता था मानो पृथ्वी पर असतियों के वस्त्र ही पड़े हों। समर्थ पदातिगण आह्वान करते थे और दोनों ओर की सेनाओं के योद्धागण टक्कर मारते थे। दोनों ओर को सेनाओं के युद्ध करते-करते शत्रुओं का दल (कालयवन की सेना ) भाग उठा।96 अपनी सेना को भागते हुए देखकर कालयवन बहुत क्रुद्ध हुआ और परस्पर सवार होकर तथा हाथ में धनुष-बाण लेकर क्रोधावेश में आकर दौड़ा7 और भागते हुए अपने योद्धाओं को रोका। क्रोध के पूर से उसे पीछे से मारा। वे भी लज्जा से भरकर पुनः युद्ध में लग गये
और क्रोध के पूर से वहीं हाथी एवं घोड़ों को विदीर्ण करने लगे। कोई किसी के द्वारा नाम लेकर ललकारा गया तो कोई जिनवचन का उच्चारण करने लगा। दौड़ते हुए किसी योद्धा की छाती को बींध दिया गया, मानो स्वामी के दान का फल ही सफल हो गया हो। "शक्ति" नामक अस्त्र के प्रहार से कोई - कोई योद्धा ऐसा काट दिया गया मानो भग्न शरीर से ही वह जीवन धारण कर रहा
95 पास. घता-31 96 वहीं 317 97 बही वत्ता-32 EASKESTANTastess
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