Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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ही मद्यपान छोड़ देता है, वह अनेक दुःखों के आकर संसारसमुद्र को भी क्रीड़ा के समान पार कर लेता है। वेश्या सेवन : __ जो सुरामद में मत्त होकर मांस का स्वाद लेती है, जो जन्मभर किसी के भी रूम सौन्दर्य में आसक्त नहीं होती, जो द्रव्यवान् (धनवान्) नीच व्यक्ति का भी सम्मान करती है तथा उसके साथ रमिसुखों को म: , और दुः: बहुः गुणवान् एवं सुन्दर होने पर भी अर्थहीन व्यक्ति को अपने घर में प्रवेश नहीं करने देती। अन्य को भोगती है और अन्य को देखती है तथा किसी अन्य ही व्यक्ति का मन में ध्यान करती है। जिस प्रकार वारुही का जल रथ को काट देता है, उसी प्रकार वेश्या अपने स्नेहसे वर्तन करती है। कूट कपट आलापों से मनोरंजन करती है और पेट पालने के निमित्त अपने शरीर का मर्दन कराती है। जो देखने वालों के लिए गुजाफल के समान सुन्दर है किन्तु भोगने में वह प्राण लेवा है। यह जानकर बाजारु (वेश्या) स्त्रियों को छोड़ो। दुर्लभ शील रूपी रत्न को भग्न मत करो।/2 शिकार :
शिकार खेलना भी दुखों का कारण है, अतः निदोष प्राणियों को नहीं मारना चाहिए। बेचारे शूकर, साँभर एवं हरिण अपने शरीर की रक्षा करते हुए वन में घूमते रहते हैं, दाँतों के अग्रभाग में तृण दबाए एवं भय से काँपते हुए वे पर्वत, नदी, सरोबर एवं गुफाओं में रहा करते हैं। जो पापी उन्हें सन्ताप देता है, वह अनन्त दुखों को प्राप्त करता है। जो अपने शरीर की वेदना को जानता है, वह अन्य के प्राणों का ध्वंस नहीं करता।73
सद्बुद्धि वाला व्यक्ति तिर्यञ्चों को भी अपने बच्चों के समान मानता है, उनकी रक्षा करता है और वध नहीं करता। वह व्यक्ति कहीं भय नहीं देखता, पृथ्वी एवं स्वर्ग भवनों में वह देवियों का भोग करते हुए ज्ञान का धारी बनता है।74
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71 रधी : पास, घत्ता - 81 72 बही 5:11/19 73 वहीं 5/11/10-16 74 वहीं, घत्ता- 82
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