Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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राजा का उत्तराधिकारी :
राजा का उत्तराधिकारी वंशानुगत ही होता था। प्रायः राजा के पुत्र को ही राज्य का उत्तराधिकारी बनाया जाता था। आदिपुराण से ज्ञात होता है कि यद्यपि सामान्यत: ज्येष्ठ पुत्र राज्य का अधिकारी होता था। किन्तु मनुष्यों के अनुराग
और उत्साह को देखकर राजा छोटे पुत्र को भी राजपट्ट बाँध देता था। यदि पुत्र बहुत छोटा हो तो राजा उसे राज सिंहासन पर बैठाकर राज्य की सब व्यवस्था सुयोग्य मंत्रियों के हाथ सौंप देता था।19 राज्य का अधिकारी बनाते समय योग्यता को प्रमुखता दी जाती थी, ऐसा 'वराङगचरित '20 से पता चलता है। 'पासणाहचरिउ' में भी राजा शक्रवा21 और राजा अरविन्द22 आदि राजाओं के उत्तराधिकारी उन्हीं के पुत्र ही हुए हैं, ऐसा उल्लिखित है। प्राय: राजा वृद्धावस्था या संन्यास से पूर्व अपने पुत्र को ही राज्य भार सौंप दिया करते थे। राज्य के भाग: ___ महाकवि रइधू ने पासणाहचरिउ' में राजा दूंगर सिंह को "सप्ताङ्ग राज्य" के भारवहन करते लिए अपने कन्धे समर्पित करने वाला कहा है।23 इससे राज्य के सात अङ्ग होने की पुष्टि होती है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में स्वामी (राजा), अमात्य, जनपद. दुर्ग, कोश, दण्ड (सेना) और मित्र, ये सात राज्य के अङ्ग कहे गये है।24 महाभारत के शान्ति पर्व में राज्य के ससाङ्ग स्वरूप को इस प्रकार अभिव्यक्त किया गया है- आत्मा, अमात्य, कोश, दण्ड, मित्र, जनपद
और पुर; ये सात राज्य के अङग हैं 25 इसमें राजा को राज्य की आत्मा मानते हुए राजा के लिए आत्मा शब्द का प्रयोग किया गया है। मनुस्मृति2 6 विष्णुधर्मसूत्र27, शक्रनीतिसार2B आदि में भी राज्य के सात अंग ही माने गये हैं।
18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28
आदिपुराण 5/207 वही 8/254 वराङगचरित 2/16 रइधू : पास. 3/1 वहीं 6/10 वहीं 1/4 कौटिल्य अर्थशास्त्र / महाभारत, शान्तिपर्व 5964-65 मनुस्मृति 3294 विष्णु धर्मसूत्र 3/25 शुक्रनीतिसार 161