Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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3. देश और काल :
अमुक कार्य करने में अमुक देश या अमुक काल अनुकुल एवं अमुक देश और काल प्रतिकूल है, इसका विचार करना मंत्र का तीसरा अंग है। 4. विघ्न प्रतीकार :
आयी हुई विपत्ति के विनाश का उपाय चिन्तन करना। जैसे-अपने दुर्ग आदि पर आने वाले अथवा आए हुए विनों का प्रतीकार करना, यह मंत्र का विध्र प्रतीकार नाम का चौथा अङ्ग है। 5. कार्य सिद्धि :
उन्नाति, अवनति और समवस्था; यह तीन प्रकार की कार्य सिद्धि है। जिन सामादि उपायों से विजिगीषु (जीतने का इच्छुक) राजा अपनी उन्नति, शत्रु की अवनति या दोनों की समवस्था प्राप्त हो, यह कार्य सिद्धि नाम का पाँचवाँ अङा है।
देखा जाए तो मंत्री वहीं सफल हो सकता है जो राज्य के अभ्युदय एवं सुरक्षा के हेतु समयोचित परामर्श (मन्त्रणा) देने की क्षमता रखता है। मंत्री के गुण :
महाकवि रइधू ने पासणाहचरिठ में मंत्री के गुणों पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए कहा है कि मंत्री को विविध प्रकार के शास्त्र एवं अर्थों का रत्नाकर (ज्ञाता), कलाकार के समान विविध कलाओं से परिपूर्ण, मति से विशाल. कुल एवं जाति में विशुद्ध, दूसरों के हृदयों के विकारों को जानने वाला, सुप्रसिद्ध, अपने स्वामी के कार्यारम्भ में सम्मान प्राप्त, अपने कुल रूपी कमलों के लिए दिवाकर के समान34 और षट्कर्मों में अनुरक्त 35 आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।
सोमदेव के अनुसार राजा का प्रधानमंत्री द्विज, स्वदेशवासी, सदाचारी कुलीन, व्यसनों से रहित, स्वामिभक्त, नीतिज्ञ, 'युद्ध-विद्या विशारद और निष्कपट होना चाहिए|36 'महाभारत' के अनुसार जो काम, क्रोध, लोभ और
33 द्र. डॉ. एम. एल. शर्मा : नोतिन्वाक्यामृत में राजनीति, पृ. 97 34 पास. 3.1 35 वहीं 62 36 सोमदेव : नोतिवाक्यामृत 10/5 RESISXSrestenerusteres1612skestastusreshSYSIS