Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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'कामन्दकीय नीतिसार' में कहा गया है कि राज्य के सात अंगों में से एक अंग के भी विकल होने से राज्य में गड़बड़ होती है, इस कारण राजा को परीक्षापूर्वक इसकी सम्पूर्णता रखनी चाहिए।29 मन्त्री :
राजतंत्र में राज्यकार्य के सफल संचालन के लिए राजा मन्त्रियों की नियुक्ति किया करते थे। मंत्री भी वंशानुगत ही होते थे किन्तु दुराचारी मंत्रीपुत्र को मंत्री नहीं बनाया जाता था। शुक्रनीति में कहा गया है कि राजा चाहे समस्त विद्याओं में लितना ही दक्ष क्यों न हों फिर भी उसे बिना मंत्रियों की सहायता के राज्य के किसी भी विषय पर विचार नहीं करना चाहिए। रइधू ने राज्य परिषद् के व्यक्तियों का निरूपण करते हुए "पञ्चाङ्ग मन्त्र''1 का उल्लेख किया है। 'कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्यारम्भ करने का उपाय, पुरुष तथा द्रव्य सम्पत्ति, देश-काल का विभाग, विघ्न प्रतीकार एवं कार्यसिद्धि; ये पाँच "पञ्चाङ्गमन्त्र" कहे जाते हैं।12 पञ्चाङ्ग मंत्र का विवेचन : 1. कार्य आरम्भ करने का उपाय : __ अपने राष्ट्र को शत्रुओं से सुरक्षित रखने के लिए उसमें खाई, परकोटा और दुर्ग आदि के निर्माण करने के साधनों पर विचार करना और दूसरे देश में शत्रुभूत राजा के यहाँ सन्धि व विग्रह आदि के उद्देश्य से गुप्तचर व दूत भेजना आदि कार्यों के साधनों पर विचार करना मंत्र का प्रथम अङ्ग है। 2. पुरुष तथा द्रव्य सम्पत्ति : __"यह पुरुष अमुक कार्य करने में निपुण है", यह जानकर उस कार्य में निपुण करना तथा द्रव्य सम्पत्ति-इतने धन से अमुक कार्य सिद्ध होगा। यह क्रमश: पुरुष सम्पत् तथा द्रव्यसम्पत् नाम का दूसरा मंत्र का अङ्ग है।
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कामन्दकीयनौतिसार 412 सर्वविद्यासु कुशलो नृपो हापि सुमंत्रवित् । मंत्रिभिस्तु बिना मत्रं नेकोऽयं चिन्तयेत् क्वचित् ॥ शुक्रनीति 2:2 पास. 1/4 कर्मणायारम्भीपाय: पुरुषद्रव्यसम्पद देश-काल विभागः । विनिपात प्रतीकार : कार्यसिद्धिरिति पन्चाङ्गमन्त्रः ॥ कौटिल्य अर्थशास्त्र 1:10/14
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