Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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समान क्षणभर मे दुसरे के हो जाते हैं।83 पञ्चम सन्धि में कहा गया है कि धृष्ट, पापिष्ठ एवं दर्पिष्ट बृतान्ध मनुष्य जन्म भर भी विशिष्ट कर्मों का अनुमरण नहीं करता। वह गुणहीन जुआरी व्यक्ति घर का द्रव्य चुराकर ले जाता है और उस सबको हारकर भयत्रस्त होकर भटकता रहता है। पली, पुत्र और बहिन उसका विश्वास नहीं करती, सभी लोग उसे देखकर उसका उपहास करते हैं। उसके लिए न घर होता है और न गृहिणी, न भूख, न प्यास और न निद्रा और वह लोगों के घरों में छिद्र हूँढ़ता रहता है।84 ___ शिकार खेलना ( पारद्ध) भी अनर्थी एवं दःख का कारण हैं। अत: निर्दोष प्राणियों को नहीं मारना चाहिए। बेचारे शकर, साँभर एनं हिरण अपने शरीर की रक्षा करते हुए वन में घूमते रहते हैं। दाँतों के अगभाग में तृण दबाए एवं भय से काँपते गये शर्वत. ही सरकार सरकारों में रहा करते हैं। जो पापी उन्हें पकड़कर मन्ताप देता है, वह अनन्तः दुःखों को प्राप्त करता है। जो कुत्तों के उच्छिष्ट का भक्षण करता है, नरक में गिरते हुए उसे कौन बचा सकता है? जो जीव दुर्लभ गुण को जानता है, सो निग्य एवं हितकारी रत्नत्रय का ध्यान करता हैं। जो अपने शरीर की वेदना को जानता है, वह अन्य के प्राणों का विध्वंस नहीं करता।
सदबुद्धि वाला व्यक्ति तिर्यञ्चों को भी अपने बच्चों के समान मानता है, उनकी रक्षा करता है और वध नहीं करता। वह व्यक्ति कहीं भय नहीं देखता। पृथ्वी एवं स्वर्गभवनों में वह देवियों का भोग करता हुआ ज्ञान का धारी बनता है।85 आर्थिक जीवन :
'पासणाहरिड' में समन्नत आर्थिक जीवन की झाँकी प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ गांपाचल में पाण्डुर एवं सुवर्ण वर्ण वाली अनेक पताकाओं से युक्त जिन मन्दिर, तारण तथा अट्टालिकाओं से सुशोभित हयं, चारों ओर बाजार, चौक, दुकानों में विविध प्रकार की सानियाँ, कसौटियों पर भौम्यखण्ड, स्वर्ण रेखा नदो एवं सप्तव्यसनों से गहत लोगों का सद्भाव था। उसमें श्री मान और
83 पासाहचर3:14 84 वहीं 579 85 बहो 5:11