Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पष्ठ परिच्छेद पासणाहचरिउ में वर्णित राजनैतिक व्यवस्था
साहित्य समाज का दर्पप हो ।। है। किसी भी उम्र के समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक जानकारी का स्रोत तत्कालीन साहित्य ही होता है। मनुष्य ने अपने आरम्भिक समय से लेकर आज तक किसी न किसी रूप में राजसत्तात्मक शासन को ही अपनाया है। चाहे वह भारतीय लोकतंत्र हो या अमेरिका की अध्यक्षात्मक प्रणाली। फ्रांसीसी विचारक बोसे के अनुसार- "राजतंत्र प्राचीनतम, सबसे अधिक प्रचलित, सर्वोत्तम तथा सबसे अधिक स्वाभाविक शासन का प्रकार है।" महाकवि रइधू ने अपनी कृति "पासणाहचरिउ" में भगवान् पार्श्वनाथ के पौराणिक कथानक के वर्णन को ही मुख्य लक्ष्य रखा है, फिर भी प्रसगंवश उसमें तत्कालीन राजतंत्र और शासन व्यवस्था का विवेचन भी आ गया है जिसमें तत्कालीन राजनीति का एक लघु एवं महत्वपूर्ण चित्र उपस्थित होता है। संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार हैं .. राजा (नृप):
राजा (राजन्) शब्द का शाब्दिक अर्थ शासक होता है। लेटिन में राजा के लिए रेक्स (Rex ) शब्द का प्रयोग हुआ है, जो इसी अर्थ का द्योतक है किन्तु भारतीय परम्परा में राजा की एक विशिष्ट व्याख्या की गई है। हरिवंश पुराण में राजा की स्पष्ट और सर्वाङ्गीण परिभाषा इस प्रकार की गई हैं "उसे (राजा को) मनुष्यों की रक्षा करने के कारण नप, पृथ्वी की रक्षा करने के कारण भूप और प्रजा को अनुरञ्जित करने के कारण राजा कहते हैं।''2 महाभारत में युधिष्ठिर द्वारा राजा शब्द की व्याख्या करने का निवेदन किए जाने पर भीष्म उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि "समस्त प्रजा को प्रसन्न करने के कारण उसे राजा कहते हैं।''3 महाकवि कालिदास ने रघुवंश में रघु का वर्णन
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राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त, लेखक-पुखराज जैन, पृ. 261 नपस्तवं रक्षणान्नृणां भूपो रक्षणतो भुवः ।
त्वमेव जगतो राजा, राजन् प्रकृतिरञ्जनात् ॥ ___ महाभारत, शान्तिपर्व 59:125
हरिवंश पुराण 19:16
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