Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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कुलक्षणा स्त्री कुटिल चित्त वाली, चञ्चल यौवन के मद से सर्वत्र मत्त, नरक-पृथ्वी के समान अनेक दु:खों की खानि, कुल को मलिन करने वाली, दुष्टा तथा अपयश की योनि होती है।
'पासणाहचरिउ' में सपुत्र एवं कुपुत्र दोनों के लक्षण प्राप्त होते हैं। सुपुत्र प्रसन्न घटेन, नसीधावनिक्षणों में युतीयसको अन्तित राहसी, सहस्रों को अकेन्ना जोतने वाला, विज्ञान में कुशल, जिनेन्द्र द्वारा भाषित सूत्रों को जानने वाला, राज्य कार्य एवं व्यापार कार्य में कुशल, गम्भीर, यशस्वी, बहुगुणज्ञ, प्रभावान, ऋषि एवं देवभक्त, गृहस्थी का भार धारण करने में धुरन्धर, कमल के ममान (सौम्य मुख, देवोपम, सभी का निन्य श्रेष्ठ उपकार करने वाला, क्ल को प्रकाशित करने वाला, निखिल विद्या विलास को प्राप्त, जिन सिद्धान्त रूपो अमृत रस ये तृप्त 11 पिता के हाथों का रन.12 बुद्धि में बृहस्पति के समान अथवा धन कुबेर, पृथ्वी पर माना माक्षर होकर ही आया हुआ, पवित्र चित्त वाला . सुन्दर शरीर वाला. मेरु पर्वत के समान निर्मल एवं लोगों द्वारा नमस्कृत,13 दिशाओं का श्रृंगार, याचक जनों के मन की निर्धनता को दूर करने वाला, गुणों का सागर तथा चन्द्रमा के समान सौम्य होता है।14
कुपुत्र अपने अपयश से आच्छादित होता है।15 वह कलुषित मन वाला, दुर्नयकारी, काले नाग के समान कुटिल चालों वाला, कुत्सित कानों वाला अथवा कुत्सित शास्त्रों का ज्ञाता, परछिद्रान्वेषी तथा अत्यन्त अभिमानी16 होता
भोजनपान :
'पासणाहचरिंउ' में प्रिय वास से सुवासित, ताजे लक्ष लक्ष पक्वान्न स्वनिर्मित स्वक पात्रों से सजाकर रखे जाने का उल्लेख हुआ है।17 यहाँ निर्मल
10 पासणाचरिउ 3 1] वही 16 17 वही 45 13 वा 62 14 वहीं 79 15 वी 48 | वही 62 17 वाटी 213