Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पञ्चम परिच्छेद सामाजिक जीवन
परिवार
परिवार सामाजिक जीवन की रीढ़ है। परिवार में पति और पत्नी के अतिरिक्त माता पिता, भ्राता-भगिनी, पुत्र-पुत्री आदि रहते हैं।
सामान्यतया परिवार के सदस्यों के पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे होते थे। परिवार का स्वामी वयोवृद्ध सदस्य या पिता होता था। पिता की कीर्ति का बहुत ध्यान रखा जाता था। जब पिता अश्वसेन यवन नरेन्द्र से युद्ध करने के लिए जाने लगे तो पुत्र पार्श्व ने उनसे कहा- हे तात ! आप ही कहें मुझ जैसे वन हृदय वाले पुत्र के घर में रहते हुए आप (युद्ध में) क्यों जा रहे हैं (मैं अकेला ही) कालयवन को रणभूमि से उखाड़ फेकूँगा और जय श्री को अनुरागपूर्वक अपने हाथों में ग्रहण करूँगा। मुझ जैसे पुत्र के रहते हुए हे राजन् ! आपका युद्ध में जाना क्या योग्य है? भाई का भाई के प्रति अनूठे प्रेम का उदाहरण मरुभूति के चरित्र में मिलता है। जब राजा अरविन्द ने नगर के लोगों से यह सुना कि मरुभूति का भाई कमठ अपने भाई की पत्नी से व्यभिचार करता है। तब वह मन में कुपित होता है और मरुभूति से कहता है कि "नगर में इस अनिष्ट कारी, धृष्ट, प्रमत्त, दुष्ट, पापकर्मी एवं निकृष्ट कमठ का होना इष्ट नहीं है। वह तुम्हारे लिए लज्जाकारी एवं कुलाचारसे भ्रष्ट है, उस भ्रष्ट को मैं नगर से निकालता हैं। राजा की बात सुनकर वाक्पटु, मरुभूति अदौनभाव से बोला "तीनों लोकों में श्रेष्ठ नीति के विचारक हे राजराजेश्वर, भट्टारक, आपने यह क्या कहा है? कमठ कुलाचार का पालक एवं सद्वेदों के अर्थ के स्वाध्याय में नित्य प्रवीण है। वह निन्ध परदारा को कैसे चाह सकता है? वह मेरा अनिन्ध ज्येष्ठ भाई है, तुम्हें किसी पापी ने झूठ ही कह दिया है। हे नरेन्द्र ! वह माननीय नहीं है, (सर्वथा) अयुक्त है। __राजा अरविन्द को समझाकर जब मरुभूति सुख से रह रहा था, तभी किसी अन्य दिन जब वह घर में ही था, तब एक व्यक्ति ने उससे कहा-"तुम्हारा भाई
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