Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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इसकी राजधानी बतलाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि साधिक चार मास की आत्मशोधनार्थ की गयी तपः साधना के मध्य तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ कुर जनपद की महानगरी हस्तिनापुर पहुँचे। वहाँ पारणा करके गङ्गा के किनारे-किनारे बिहार करते हुए वह भीमाटवी नामक वन में योग धारण. कर कार्यात्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ हो गए। इस अवस्था में वहाँ उन पर शंवर (अपर नाम मेघमाली पूर्वजन्म का कमठ) नामक दुष्ट असुर ने भीषण उपसर्ग किए। नागराज धरणेन्द्र और उनकी पत्नी पद्मावती ने उक्त विविध भयङ्कर उपसों का निवारण करने का यथाशक्य प्रयत्र किया। नागराज ( अहि ) ने भगवान के सिर के ऊपर अपने सहस्रफणों का वितान या छत्र बना दिया। स्वयं योगिराज पाच तो शुद्धात्म स्वरूप में लीन थे। उफ उपसर्गों का उन्हें कोई ज्ञान नहीं था। उन्हें तभी केवलज्ञान को प्राप्ति हो गयी, वह अहंन्त जिनेन्द्र बन गए। धन के बाहर आस पास के क्षेत्रों के निवासी लोगों की अपार भीड़ वहाँ एकत्रित हो गयी। भगवान की अचना-वन्दना स्तुतिगान हुआ। उनको समवसरण सभा जुट गई और लोग उनके सर्व कल्याणकारी दिव्य उपदेश सुनकर कृतार्थ हुए। इस पुनीत स्थन से नाति दूर भीमाटवी वन के बाहर उत्तर पञ्चाल। जनपद की राजधानी पंचालपुरी अपर नाम परिचक्रा एवं शेखावती विस्थत थी। इस अभूतपूर्व घटना के कारण वह स्थान ही नहीं, वह नगरी भी छत्रावत्नी या अहिच्छन्ना के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुई।३४
अन्य नगर :
'पासणाहरिङ' में कुशस्थल40, आशापुरी41 आदि नगरों का भी उल्लेख मिलता है। प्रकृति चित्रण : ___ भारतवर्ष प्राकृतिक सुपमा का विशान आगार माना जाता है। इस देश का दूसरा पर्याय ही प्रकृति है। प्रकृति अनन्तकाल से मानव की सहचरी के रूप में प्रतिष्ठित है। सृष्टि के प्रथम पुरुप के जन्म से लेकर आज तक जन्मे
39 डॉ. रमेशचन्द जैन : आ जा की रामप्पदा पृ. 14, अनेकान्त वर्ष 39 कि. 4
अब दिम. 1986) डा. अयोनिप्रसाद जी का अहिच्छन्ना सम्बन्धी लेखा 40 पासपाहवार 3:1 41 वहीं 6.15