Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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सभी व्यक्तियों की क्रीड़ास्थली प्रकृति हो रही है। मानव की सभी आकांक्षाओं की पूर्ति प्रकृति के द्वारा ही होती है। वस्तुतः प्रकृति और मानव का सम्बन्ध शाश्वत होने के साथ ही साथ सत्य भी है। प्रकृति और मानव का घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण मानव द्वारा रचित काव्य भी उससे अछूता नहीं रहा और यही कारण है कि सम्पूर्ण अपभ्रंश साहित्य प्रकृति के सुन्दर वर्णनों से भरा हुआ है। ____ अपभ्रंश काव्य में वर्णित प्रकृति के अनन्त रूप पूर्णतया सार्थक और सोद्देश्य हैं। काव्य में सरसत्ता का संचार करने के लिए कवियों ने प्रकृति को माध्यम बनाया और काव्य में प्रकृति की अनिवार्यता को माना।
"काव्य प्रकृति का घर है और प्रकृति काव्य का प्राण है", इस उक्ति को मान्यता देने नाने कवियों ने प्रकृति को ना दी। कुछ कालिगों ने तो प्रकृति का मानवीयकरण ही कर दिया, जैसे – महाकवि कालिदास ने अपने "मेघदूत" में यक्ष का अपनी प्रिया को सन्देश मेघ से कहलाने की चेष्टा की।
भारतीय और पाश्चात्य महाकाव्यकारों ने काव्य में प्रकृति की अनिवार्यता को माना। सातवीं शताब्दी के प्रख्यात संस्कृत कवि दण्डी ने महाकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए उसमें समुद्र, पर्वत, चन्द्रोदय, सूर्योदय, सूर्यास्त , रात्रि आदि का अङ्कन आवश्यक बताया है।42 ___ महाकवि रइधू ने अपनी कृति "पासणाहचरिउ" में भ. पार्श्वनाथ के जीवन चरित को प्रकृति के सुरम्य वातावरण में ही गुम्फित किया है। महाकाव्य में जगह-जगह हमें पृथ्वी, पर्वत, नदी, आकाश जीव-जन्तु, पशुपक्षी आदि के अनेक वर्णन मिलते हैं :
महाकवि रइधू ने काशी नगरी का वर्णन करते हुए उस नगर की प्रकृति के रूप में ही मानो परिवर्तित कर दिया हो "इसी जम्बूद्वीप में सुमेरु पर्वत के दक्षिण में लक्ष्मी के घर के समान भारतवर्ष में काशी नामक देश है, जो मानो पृथ्वी रूपी युवती का सुखपूर्वक पोषण करने वाला वर ही हो। जहाँ शुभ्र वर्ण वाले गौसमूह धान्यकण चरा करते हैं। वहाँ कोई भी उनके लिए (गायों के लिए) तृण नहीं काटता। जहाँ कोई कृषक कन्या (तो) शुकसमूह
42 काव्यादर्श 1/16 RESSISISISesexms 129xsessmesteresTSIAS