Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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इस प्रकार खेऊ साहू की वंशावली का वर्णन कर हुए कवि ने अपने साथ खेऊ साहू के साथ धार्मिक वार्तालाप के बीच उसके द्वारा " श्री पार्श्वनाथचरित " लिखने के आग्रह को स्वीकार किया। अब यहाँ से मूल कथा प्रारम्भ होती है, जो इस प्रकार है :
इसी जम्बूद्वीप में सुमेरुपर्वत के दक्षिण में काशी नामक सुखकर देश हैं, उसमें देवों के लिए प्रिय वाराणसी नाम की नगरी है। उस वाराणसी नगरी में अश्वसेन नामक राजा राज्य करता था, उसकी वामा देवी नाम की प्रिय पट्टरानी थी जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुख को देने वाली थी। राजा उस रानी के साथ भोग करता हुआ सुखपूर्वक रहता था।
द्वितीय सन्धि :
स्वर्ग में सुरेश्वर का शासन कम्पायमान हुआ, तब उसने अपने अवधिज्ञान से उसका कारण जानकर कुबेर से कहा कि " हे कुबेर यक्ष ! इसी भरत क्षेत्र के काशी देश की वाराणसी नगरी में राजा अश्वसेन के घर पार्श्वप्रभु जन्म लेंगे, अतः तुम वहाँ जाकर महान शोभा करो। " इस प्रकार सुरेश्वर की आज्ञा से यक्ष ने वाराणसी आकर नगर की शोभा की ओर श्रेष्ठ स्वर्ण तथा रत्नों की वर्षा की। सर्वत्र आनन्द छा गया। इन्द्र के आदेश से श्री, ह्री धृति, कीर्ति आदि प्रमुख देवियाँ वामादेवी की सेवा सुश्रूषा हेतु आ गयीं। इन्द्राणी ने वामादेवी के पास पहुँचकर स्तुति करते हुए कहा कि हे देवि! तुम्हारी कोख सुधन्य है, जो तीनों लोकों के विजेता स्वामी की माता बनने वाली हो। इस प्रकार स्तुति करती हुई वहीं वामादेवी की सेवा में निवास करने लगीं। इस प्रकार देवांगनाओं से सेवित वह वामादेवी उत्तम पलंग पर लेटी हुई प्रगाढ़ निद्रा के वशीभूत हुई।
तदनन्तर उसने पश्चिम रात्रि में सुखद फल देने वाले सोलह स्वप्न देखे ! प्रातः शय्या से उठकर रानी श्रृंगार कर अपने पति अश्वसेन से उन स्वप्नों का फल जानने गई। रानी ने राजा को प्रणाम कर रात्रि में जो स्वप्न देखे थे उन्हें यथावत् कहा। राजा ने उन स्वप्नों का अर्थ बताते हुए कहा कि हे देवि ! तुम त्रिलोकजयी तीर्थंकर पुत्र की माता बनोगी। यह सुनकर रानी अत्यन्त हर्षित हुई और उस रात्रि अपने स्वामी के साथ श्रेष्ठ सुखों का भोग किया। भवभ्रमण का विनाश करने वाली सोलह भावनायें भाकर, तीर्थङ्कर गोत्र को बाँधकर वैजयन्त स्वर्ग में जो देव हुआ था, वह बत्तीस सागर की आयु भोगकर वामादेवी के गर्भ में आया। वह दिन वैशाख कृष्ण द्वितीया का था। देवों ने आकर गर्भ कल्याणक महोत्सव मनाया। यक्षेन्द्र ने रत्नवर्षा की।
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