Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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द्वारा किए गए शिला के आघात के आर्तभाव से मरकर तेरा वही जीव यह हाथी हुआ है तथा मैं पोदनपुर का राजा अरविन्द था वह तप धारण कर वन में स्थित हो गया हूँ।
हे गजश्रेष्ठ ! अब तुम किसी को दुखी मत करना, क्योंकि हिंसा से नरक में दुख प्राप्त होता है, जिससे जीव संसार-समुद्र में बता हैं और चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। हिंसा से पुरुष कुत्ता एवं दुर्गन्धयुक्त होता है। हिंसा से व्यक्ति पङग, बहिरा एवं अन्धा होता है। हिंसा से व्यक्ति तुरन्त ही दीदर्शनीय हो जाता है। जो हिंसा करता हैं अथवा जो तिलमात्र भी मांस भक्षण करता है वह नाश को प्रास होता है। हे श्रेष्ठ गजेन्द्र ! तुम हिंसा छोड़ दो, अपने को दुर्गति में मत ढकेलो। निमल सम्यग्दर्शन से युक्त पवित्र श्रावक व्रत ले लो। अपने दुष्कृत का यह प्रतिफल देखो कि ब्राह्मण भी मरकर कलि के समान काला हाथी हुआ।
इस आसना भव्य गज ने मुनिराज के सदुपदेश को सुन उन्हीं के चरणों में प्रणाम कर व्रत ग्रहण किये। उसके बाद संसार रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले सूर्य के समान भुनिवर विहार करगये और व्रती गजराज भी वन में भ्रमण करने लगा। वह दूसरों के द्वारा तोड़े हुए वृक्षों के पत्तों को खाता हुआ श्रावक व्रत की रक्षा स्थिर भाव से करता था। वह जल को भी मदरहित भाव से जल में प्रविष्ट होकर पीता था, पंचेन्द्रिय जीव को विराधना नहीं करता था। वह मार्ग में पिपीलिका आदि कीड़ों को धीरे-धीरे देखता हुआ चलता था। वीतराग मुनि के वचनों का ध्यान करता था। कभी भी आतं या रौद्र भाव मन में नहीं लाता था। अहर्निश वनगुल्म्म में रहता, जब चलता तो गजसमूह के पीछे-पीछे चलता। वह धैर्यवान् विरस आहार लेने एवं नित्य परीषह सहने से कृशकाय हो गया। किसी अन्य दिन जब वह जल पीने के लिए सरोवर में घुसा तो कृशकाय होने से वहीं फँस गया।
इधर तापस कमठ भी रौद्रध्यान के कारण मरकर वहीं कुक्कुट नाम की सर्प योनि में धवलवर्ण का तथा साक्षात् हलाहल के समान दुष्ट सर्प हो गया। जिस स्थान पर वह हाथी फंस गया था वह सर्प वहाँ आया, वह ऐसे लगा मानो गजेन्द्र के लिए क्षयकारी काल ही आ गया हो। अतीत के बैर का जिसे भान हो गया है, ऐसे उस सर्प ने उस हाथी को डंस लिया, किन्तु वह किसी भी प्रकार दुःखित न हो रम्य जीव दया - धर्म से मन का संवरण करके और अनशन विधि ग्रहण करके मरकर सहस्रार-कल्प में उत्पन्न हुआ और देव योनि में श्रेष्ठ सुखों PASReshasexesKasxesxesiresses kesxesesxesesxesyeshesness