Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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को आकर्षित करती है, उसी प्रकार स्वर्णरेखा नदी भी अपनी मनोहारिता के कारण सभी को आकर्षित करती होगी। इस प्रकार की मनोहर नदी का आगमन मानो तोमर राजा के पुण्य से ही हुआ था।
डोंगरेन्द्र के पुत्र के लिए रइधू ने सूर्य, यशाङकुर और जयश्री के भाई रूप उपमानों का प्रयोग किया है। सूर्य अपने तेज के लिए सुप्रसिद्ध है, उसी प्रकार डोंगरेन्द्र का पुत्र भी तेजस्वी था। जिस प्रकार छोटा अङ्कर बढ़कर आगे विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता है, उसी प्रकार डोंगरेन्द्र के पुत्र के यश के बढ़ने की भी उत्तरोत्तर सम्भावः। श्री। जिस प्रकार बहन का अपने भाई के प्रति अगाध स्नेह होता है उसी प्रकार जयश्री मानो डोंगेन्द्र को अपना भाई मानती
जिस प्रकार हाथी से सदा मदजल झरता है, उसी प्रकार खेमसिंह साहू सदैव दान किया करते थे।
जिस प्रकार रत्नों की खान से सुन्दर-सुन्दर रस्त्र प्राप्त होते रहते हैं, उसी प्रकार खेमसिंह की धनवती नामक प्रणयिनी नररत्नों की मानो खान थी।
जिस प्रकार किसी युवती का वर सुखपूर्वक उसका पालन-पोषण करता है, उसी प्रकार काशो नामक देश पृथ्वी रूपी युवती का मानो पालन-पोषण करता
था।
जिस प्रकार किंकर स्वामी की आज्ञा का निरन्तर अनुवर्तन करते हैं, उसी प्रकार वामादेवी के चरणों में धारण किए हुए नूपुर भी मानो आज्ञापालक किंकरों के समान झण-झण शब्द करते थे।
अश्वसेन राजा की विभूति देखकर कवि कहता है कि वह ऐसा था, मानो जयलक्ष्मी ने नवीन वर ही धारण कर लिया हो। उसकी प्रचुर धार्मिक क्रियाओं को देखकर कवि कल्पना करता है कि मानो पृथ्वी पर धर्म ही अवतीर्ण हो गया
जिस प्रकार मणि सभी को प्रिय होती है, वह यदि खो जाये तो लोग उस के गुणों के प्रति और भी अधिक आकर्षित होते हैं, उसी प्रकार वामादेवी के मुखमण्डल को लोग उसी प्रकार देखते थे, मानो भूली हुई मणि को खोज रहे