Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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इंदियभुवंग - इन्द्रिय रूपी भुदङ्ग
4/6 जणम पयोहि - जन्म रूपी समुद्र भवतर = पव रूपी वृक्ष
5/6 भत्रवण = संसार रूपीवन भव्चकंज = 'भव्यजन रूपी कमल
5/13 तवलचित्र : तप रूपी लक्ष्मी
6/8 तवसिरि = तप रूप लक्ष्मी कुलकुमुव = कुल सभी कुमुद
6/22 जिणधम्मरसायण - जिनधर्म रूपी रसायन
6/22 कवि के उपमान सार्थक हैं, जिस प्रकार कमल सबको आवार्षित करने वाला और सर्वत्र अपनी सुगन्धि फैलाने वाला होता है, उसी प्रकार कुल पुत्र सबको आकर्षित करने गला और अपनी यश रूप सुगन्धि को सब जगह फैलाने वाला होता है। प्रद्युमा साहू ऐसे ही कुलपुत्र थे। कवि ने उन्हें अग्रवाल कुल कगन कहा है।
जिस प्रकार समुद्र से डबी हुई वस्तु का उद्धार होना बहुत कठिन है। इसी प्रकार ससार से निकलना भी बड़ा कठिन है। अत: कवि ने संसार को समुद्र कहा है।
जिस प्रकार समुद्र गम्भीर होता है, उसी प्रकार आगम भी गम्भीर होता है। ऐसे आगम के अर्थ को धारण करने वाले भट्टारक यशः कीर्ति को कवि ने आगम रूपी अथं का सागर कहा है।
जिस प्रकार लोक में रत्न श्रेष्ठ माना जाता है, उसी प्रकार सम्यक्त्व भी श्रेष्ठ होता है। अत: कवि ने सम्यक्त्व को रत्न कहा है।
जिस प्रकार रसायन का सेवन करने से अपूर्व लाभ होता है, उसी प्रकार काव्य का सेवन करने से अपूर्व लाभ होता है, अतः कवि ने काव्य को रसायन कहा है। जिन धर्म भी इसी प्रकार का रसायन है।
जिस प्रकार वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कोई युवती मनोहर लाती है, उसी प्रकार शस्यश्यामला पृथ्वी भी मनोहरी है अत: रइधू ने पृथ्वी की उपमा युवती से दी है। ___जिस प्रकार काला नाग यदि काट खाए तो प्राण धारण करना कठिन होता है, इसी प्रकार विषयभोग का परिणाम भी दुःखदायी होता है। अत: रइy ने विषयों को भुजङ्ग कहा है।