Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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(आगल) बोलता हुआ वह सभी के लिए अपना माथा झुकाता है एवं यदा कदा गाता हुआ भी लड़खड़ाता हुआ घूमता फिरता है।
कमठ द्वारा भयङ्कर जल वर्षा के प्रसङ्ग में भयानक रस की सृष्टि की गयी है.
लड़यडइ-तड़क्कड़ असणिचंड गज्जइ घडहडइ चलेड भंड। भहरकुलाइ किय खंड खंड गयज्जिय भजिय रडियसंड । अलिकजल-ताल-तमाल वण्णु दुप्पुत्तु व मेहँ गयणु छण्णु । मयउल भय तट्ठ पगढ़ खिण्ण जलधारहिं पक्खिहिँ पक्ख छिपण । सरि -सरु दरि महियलु थलु असेसु पूरिउजलेण अणु गिरवसेसु । तहि मग्गा मग्गुण मुणइ कोइ ||
4/8. आकाश में प्रचण्ड वज्र तड़तड़ाने, गरजने, घड़बड़ाने और दर्पपूर्वक चलने लगा। तड़क-भड़क करते हुए उसने सभी पर्वत समूहों को खण्ड-खण्ड कर डाला। हाथियों को गुर्राहट से मदोन्मत्त साँड़ चीत्कार कर भागने लगे। आकाश भ्रमर, काजल, ताल और तमालवणं के मेघों से उसी प्रकार आच्छादित हो गया, जिस प्रकार कुपुत्र अपने अपयश से। मृगकुल भय से त्रस्त होकर भाग पड़े और दु:खी हो गए। जलधाराओं से पक्षियों के पंख छिन्न-भिन्न हो गए। नदी, सरोवर, गुफायें, पृथ्वीमण्डस एवं वनप्रान्त सभी जल से प्रपूरित हो गए। वहाँ मागं एवं कुमार्ग का किसी को ज्ञान नहीं रहा।
कवि ने रौद्र रस का सुन्दर निरूपण किया है। राजा अरविन्द कमठ के दुराचार से खिन्न होकर क्रोधातुर हो जाता है और उसे नाना प्रकार के दुर्वचनों से तिरस्कृत करता है
अणिो ण इट्ठो पुरे एह धिट्ठो पमुत्तो खलो पाक्यम्मो णिकिट्ठो । तुमं लज्जयारो कुलायार भट्ठो पुराउ सुणिस्सारयामीति भट्ठो! 6/4
नगर में इस अनिष्टकारी, धृष्ट, प्रमत्त, दुष्ट, पापकर्मी एवं निकृष्ट कमठ का होना इष्ट नहीं हैं। वह तुम्हारे लिए लज्जाकारी एवं कुलाचार से भ्रष्ट है, उस भ्रष्ट को मैं नगर से निकलता हूँ।
सौन्दर्य का चित्रण करते समय कवि की श्रृंगारिक भावना की अभिव्यक्ति होती हैं। राजा अश्वसेन को पटरानी वामादेवी के सौन्दर्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है : PMSASAMSKSXxxaslustess) 11165sesrusassastestry