Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पुग्गलसहाउ पूरइ गलए अंजलिजलु व्व आउसु ढलए । महवाधणु व्व धणु सुहु अधिरु जूवाघणु व्व खणि होइ परु । संझाधणरंगु व रायरुइ इंदियसुहु परु जहिं असइमइ । कंतारइ तारायण नाला मलहरलगाई जति मिहिला । णवजोव्वणु णइपूरु व वरसइ लावण्णु वण्णु दिणि दिणि ल्हसइ । इंदिय सुणु तडि-तरलत्तणउ अवसाणि सरोरु ण अप्पणउ । भारुवहय-जरपत्तुव-सरिसु तह रज्जु-भोउ सासउ ण कसु। 3/14
पुद्गल का स्वभाव है कि वह बढ़ता और घटता रहता है। आयु अंजलि के जल के समान ढलती जाती है। धन एवं सुख इन्द्रधनुष के समान अस्थिर हैं। अथवा वे जुए के धन के समान क्षण भर में दूसरे के हो जाते हैं। सन्ध्याकालीन बादलों के रंग के समान राग एवं रुचियाँ भी क्षणिक हैं जहाँ कि इन्द्रियसुख व्यभिचारिणियों के समान दूसरे का हो जाता है। स्त्री भोग तारागण के समान सरल हैं और जहाँ भाग्य जलधर के समान चंचल हैं। नवयौवन (बरसाती) नदी के पूर के समान क्षीण हो जाने वाला है। सौन्दर्य और वर्ण प्रतिदिन हीयमान हैं। इन्द्रियसुख बिजली के समान चंचल हैं। अवसान के समय शरीर भी अपना नहीं रहता। राज्यभोग भारोपहत जीर्णपत्र के समान किसी के लिए शाश्वत नहीं होता! पासणाहचरिउ की छन्द-योजना : ___ पासणाहचरिउ में अधिकांश पद्धडिया छन्द का प्रयोग किया गया है। पद्धडिया छन्द के अतिरिक्त इसमें घत्ता, अडिल्ल, द्विपदी, रड्डा, भुजङ्ग प्रयात चन्द्रानन, सर्गिणी तथा संसग्गि छन्दों का प्रयोग किया गया है। पद्धडिया (पउझडिया):
प्रत्येक चरण के अन्त में जगण की रचना कर चार स्थान पर चतुमात्रिक गण की रचना करो, इस पञ्झटिका छन्द में चारों चरण समान होते हैं तथा 64 मात्रा होती हैं। (इसे सुनकर) चन्द्रमा प्रस्रवित होता है।61 जैसे
पुणु रिसहणाहु पणाविवि जिणिदु भवतम णिपणासणि जो दिणिंदु । सिरि अजिउ वि दोस कसाय हारि संभउ वि जयत्तय सोखकारि ॥
पासणाहूचरिठ 1/1
61 चठमा करह गपा चारि ठाइँ, ठवि अन्त पओहर पाई पाई।
चठसट्ठि मत्त पज्झरइ इंदु,
समा धारि पाअ पझडिय छंदु॥ प्राकृत पेंगलम् 1.125 KesKaisrustusxisisters 113MSUSTASTESXASIXSEXSI