Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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वह कमठ भी रौद्र ध्यान के कारण मरकर कुक्कुट नाम की सर्पयोनि में धवल वर्ण का तथा साक्षात् हालाहल के समान दृष्ट सर्प हुआ)51
सर्प ने हार्थी को कैसा देखा जैसे ध्यान में स्थित ऋषीश्वर हो 52
उसकी विजया नाम की अतिवल्लभा प्रिया थी, जो हाव-भाव एवं विभ्रमों की जलवाहिनी के समान थी531
उस (वज्र पीड़ राजा) ने एकच्छत्र मेदिनी को भोगा और फिर उसे बूढ़ी दासी के समान शीघ्र ही त्याग दिया।54
राजा रविकीर्ति कुल रूपी कुमुदों के विकास के लिए चन्द्रमा के समान था55। रूपक प्रयोग :
जहाँ उपमान और उपमेय में अभद होता है, वहीं रूपक अलङ्कार होता है।56 रइधू ने 'पासणाहचरिउ' में अनेक स्थानों पर रूपक का प्रयोग किया है। कुछ दृष्टान्त प्रस्तुत हैं
अयरवाल कुल कमल अग्रवाल कुल रूपी कमल 1/5 परियण कहरव वण-परिजनों रूपी कमलवन । भवपण - संसार रूपी समद्र। आयमत्थसायरो - आगम रूपी अर्थ के सागर तोमर कुल श्री = तोमर कुल रूपी लक्ष्मी सम्मत्तरयण - सम्यक्त्वव रूपी रन कव्वरसायणु .. काव्य रूपी रसायन महि जुबइ- पृथ्वी रूपी युवती कुल गिह सर - कुल गृह रूपी सरोवर विसयभुयंग = विषय रूपी भुजङ्ग
3/9 दुग्गइँ दुह = दुर्गति रूप दुःख
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51 सो कमठु वि तावसु रुद्दशाणवसु मरिवि जाउ तहिं सप्पु खलु। .
कुकुडणामालउँ वाणे एक्लउ पयडु णाई हालाहलु।। 6/12 52 सप्पे हस्थि णिहालिड केहउ। झाणे थक्कु रिसीसरु जेहछ। 6/13 53 तहु बल्लह विजया सीमंतिणि हावभावविभमजलवाहिणि। 6/15 54 एयच्छतें मेह णितिं भुत्ती। जरदासि व पुणु सिग्घ चत्ती: 6/15 55 णियकुल कुमुववियासणचंदें। 6/22 56 सद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः।
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