Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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नेमसिंह की गति में हंसिनी के समान, वाणी में कोयल के समान, सौभाग्य एवं रूप सौन्दर्य में चेलना के समान अथवा राम के साथ श्रेष्ठ सीता के समान धनवती नाम की प्रणयिनी थी 36
माँ के उदर से जिनेश्वर किस प्रकार निकले ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार मेघपटल से दिनकर 37
पाण्डुक शिला पर एक एक महाय॑ सिंहासन था, जो मुनि मन के समान अत्यन्त निर्मल था|38
पार्श्व जिन दशलक्षण धर्म के भेदों के समान हिन्दोले में बढ़ने लगे।
कुशस्थल नगर में कामदेव के समान सुन्दर शक्रवर्मा नामक राजा (निवास करता) था10
(युद्ध के समय) किन्हीं ने अञ्जन पर्वत के समान कान्तिवाले मदोन्मत्त हाथी को मार गिराया तो किसी ने सागर की चञ्चल तरंग के समान घोड़े को सुभट सहित मार गिराया
राजा अकीर्ति की सेना उसी गकार जप्त हो गयी जिस प्रकार (वेदगान) में स्वरभंग होने से कोई ब्राह्मण यति भ्रष्ट हो जाते हैं।12
जिस प्रकार विषयरूपी भुजङग से दष्ट होकर कुमुनि पतित हो जाता है और जैसे रवि के तेज से तम का भार नष्ट हो जाता है अथवा जिस प्रकार सम्यग्दर्शन से दुर्गति रूप दु:ख अथवा तप के प्रभाव से कामदेव भग्न हो जाता हैं और जिस प्रकार आत्मदर्शन से कर्मसमूह ही नष्ट हो जाता हैं, उसी प्रकार वह दुष्ट (कारावन) भी युद्धभूमि छोड़कर भाग गया43
36 गथ इंसणीव कलयंठि वाणि।
सोहग्गरूव चेल्लणि व्व दिट्ठ सिरिरामहु जिहँ पुणु सीय सिढ़। 116 37 वरह यासर जिणेसु केम जलहर पडलाइदिणेसु तेभ। 215 38 पुणु एक्केरकपीदि सिंघासणु। अइणिम्मलु अणग्घु णं मुणिमणु ।। 2/11 39 हिंदोलयाम्म वढेइ देठ। दहलक्खणधम्महो णाई भेल। 2/15 10 गयरु कुसत्थलु णाय सुहयरु समया राण रूवे सरु।। 3/1 41 केहि मि पाडिय मयमत्तदंति। अंजण महिहरसम जाह कत्ति।
के वि सह सुहडें बरतुरंगु। र्खदिउ णं चल--सायर तरगुं। 37 42 तेण रविकांत रायस्म बल लट्ठ गाइँ सर भिण्णु बंभजई भट्ठ।। 38 43 कुमुणि व विसय भुवर्गे द । ण रवितेएं तमभर मदछ
गं सहसा दुगा दु तच पहा | भग्गल पागरुहु।
णं अप्पाईराणि कामहँ गणु तिं सो दुट्ट णळु डिवि रणु। 3.3 Keshestsresheesesses 10s kestastestersness