Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
View full book text
________________
यमक योग :
यदि अर्थ हो तो पृथक्-पृथक् अर्थ वाले (अन्यथा निरर्थक) स्वर-व्यन्जन समुदाय की उसी क्रम से आवृत्ति को यमक अलङ्कार कहते हैं।58 'पासणाहचरिउ' में भी यमक का प्रयोग हुआ है उदाहरणार्थ
सिद्धस्थभाव भावियमणेग 117-- मनोरथ सिद्धि की भावना से भक्ति मत से यहाँ भाव भाव की आवृत्ति हुई है। पहला भात्र सार्थक और दूसरा भावित का अङ्ग होने से निरर्थक है।
बालत्तणि असइँ अभक्खु, भक्खु 1/8 यहाँ भक्खु की पुनरावृत्ति हुई है। अंतिम भक्खु सार्थक और पहला निरर्थक
जहिं गहवइ-सुय-सुयगणु वारइ ।। 1/9 यहाँ पहले सुय का अर्थ पुत्री (सता) और दूसरे सुय (शुक्र) का अर्थ तोता
उपर्युक्त अलङ्कारों के अतिरिक्त कवि ने स्वभावोक्ति, अर्थान्तरन्यास काव्यलिङ्ग, समासोक्ति एवं अतिशयोक्ति के प्रयोग विशेष रूप से किए हैं। रस योजना : __ 'पासणाहचरिउ' का अङ्गीरस शान्त है, पर श्रृङ्गार, वीर और रौद्र तथा वीभत्स रसों का भी सम्यक् परिपाक हुआ है। वीर रस के उदाहरण रूप . कालयवन नरेन्द्र एवं राजा अर्ककीर्ति के युद्ध को लिया जा सकता है :
आयड्डियाइँ खम्गइँ सुतिक्ख णं जमेण जीह दसिय पथक्ख । वरपहरणु लेइ ण कोवि धीरु मण्णेप्पिणु गरुवउ मारु वीरु । चंडासिहिँ खंडिय गयहँ जूह खंडति परोप्परु सबल जूह । कासु वि गउ कासु वितुरउ भिण्णु केणावि कासु तुहु सीसु छिपणु । केहि मि पाडिय मयमतदंति अंजण महिहरसम जाह कति । केण वि सहु सुहडें वरतुरंगु खंडिउ णं चल-सायर तरंगु । ससिणह खंडिय वरपुंडरीय णं रणमहि फुलिय पुंडरीय । केयावलि खंडिय फरहरति असईव वसा भूमिहि सहति ।
58 सत्यर्थे पृथगार्थायाः स्वरव्यञ्जनसंहतिः।
क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।।
psysxsxsxsxsidesesxesi 108 dsesxesexestosteres,