Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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1/1 1/1
पहा
नाथ
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निधान . - णिहाणु प्रधान : पहाणु णाहु
1/1 महत्
= महंतु कान्त
कंतु तृतीया विभक्ति के एकवचन में ए का प्रयोग पाया जाता है और कहीं-कहीं ए एवं एण प्रत्यय भी उपलब्ध होते हैंपरमार्थेन = परमत्थें
3/18 तेन = उपसर्गेण = उवसग्नें अनुक्रमेण ___ = अणुक्कमेण
4/15 यक्षेन .: जवखें
4/16 आदेशेन = आएसँ
4/16 तृतीया विभक्ति के बहुवचन में एकार तथा हिं प्रत्यय का आदेश प्राप्त होता है दानः = दागवहि
4/7 स्तम्भैः . थंभेहिँ उकारान्त शब्द में पंचमी के बहुवचन में हुं प्रत्यय का प्रयोग किया गया है
गुरुभ्यः .. गुरुहुं ___2/a अकारान्त शब्दों से पर में आने वाले षष्ठी के बहुवचन के रूपों में सु और हैं रे दो प्रत्यय पाए जाते हैंतावहं = तापासानाम्
3/21 कासु = केषां पूर्वकालिक क्रिया या सम्बन्धसूचक कृदन्त के लिए संस्कृत में क्त्वा और ल्यप् प्रत्यय होते हैं। रइधू ने उनके स्थान पर ई, इउ, इवि, अवि, एप्पि, एप्पिणु, एविणु और एवि प्रत्ययों को प्रयोग किया है। जैसे
लभ् = लह+इ = लहि 26 चल = चल+इठ = चलिउ 26 कोश = कोसाइउ : कोसिउ 2/6
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