Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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घटना की सिद्धि के लिए कमठ द्वारा वसुन्धरी से दुराचार, किसी व्यक्ति (गुसचर) के द्वारा कमठ के दुराचार की सूचना राजा को प्रास होना, घटना की सत्यता सिद्ध होने पर राजा द्वारा कमठ को राज्य से निकालना, कमठ का वन में जाना और अन्त में क्षमा माँगने गए मरुभूति .पर कमठ के शिला प्रहार से मृत्युः इस प्रकार मरुभूति की मत्यु की घटना का विस्तृत विवरण
दिया है।82 8-. 'पासणाहचरिउ' में कमठ द्वारा वसुन्धरी के शील भंग का उल्लेख किया है।
83 किन्तु 'उत्तरपुराण' इस विषय में मौन है।84 9- 'पासणाहचरिउ' में राजा अरविन्द के वैराग्य का कारण घने बादलों का
क्षणभर में विलीन हो जाना बताया गया है, जबकि उत्तरपुराण में कोई कारण नहीं बताया गया है।
इस प्रकार दोनों कथा वस्तुओं में अन्तर होते हुए भी मूल कथा के दोनों निकट ही हैं, जहाँ उत्तरपुराणकार का मन्तव्य कथा को संक्षिप्त में ही व्यक्त करना था, वहीं रइधू का मन्तव्य कथा को विस्तृत करके नायक को चारित्रिक विशेषताओं से युक्त कर दिखना था, इसीलिए उसने नायक को युद्धादि के लिए सन्नह दिखाकर वीरोचित शौर्य, पराक्रम आदि गुणों को भी प्रकटाने का प्रयास किया। परिवर्तन एवं परिवर्धन यदि कवि नहीं करता तो भ, पार्श्व विषयक कथा, कथा ही रह जाती; उसे महाकाव्य का स्वरूप नहीं मिल पाता।
82 रइः पास.6/3-0 83 रइधू: पास. 6/3, पंक्ति । 84 वही 6/10 85 वही 73/14 HSASTERasheesesxesexsi 78 SXSXASWASTESASRAustery