Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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अनन्तर कवि रधू द्वारा ग्रन्थ प्रणयन सम्बन्धो त्रुटियां के लिए क्षमा याचना करते हुए आश्रयदाता खेळ साहू का पारिवारिक परिचय जाति - गोत्र एवं पिछली पीढ़ियों का वर्णन किया गया। उसके बाद आश्रयदाता खेऊ साहू ने कविवर रइधू का विनयपूर्वक सुरीत्या सम्मान किया। इसके बाद निम्न भरत वाक्य के साथ ग्रन्थ पूर्ण हुआ
"पार्श्व प्रभु की कृपा से तृष्णा 'को दूर 'करने वाली अविरल जल धाराओं से मेदिनी नित्य तृप्त होवे | पृथ्वी मण्डल पर कलिमल के दुख क्षीण होवें और घरघर में मंगल गीत गाये जायें। सम्पूर्ण देश उपद्रवों से रहित रहे नरेश प्रजा का पालन करता हुआ आनन्दित रहे। जिन शासन फलेफूले, निर्दोष मुनिगण विषय वासना- से दूर रहकर आनन्दित रहें। जो श्रावककण जीव- अजीव आदि पदार्थों का श्रवण करते हैं, वे पाप रहित होकर आनन्द से रहें। सभी जन जिनेन्द्र के चरण कमलों में नतमस्तक रहें।"
कथावस्तु का मूलस्त्रोत :
1. तिलोयपण्णत्ती :
"इतिहासोद्भवं वृत्तं अन्यद्वा सज्जनाश्रयम्" उपर्युक्त पक्तियाँ महाकाव्य की सुस्पष्ट परिभाषा बताने वाले 15 वीं शताब्दी के प्रमुख कत्रि विश्वनाथ ने अपने ग्रन्थ साहित्यदर्पण में कही हैं, जिनका तात्पर्य है कि महाकाव्य की कथावस्तु किसी ऐतिहासिक कथानक पर आधारित या सज्जनाश्रित होना चाहिए 40 इस सन्दर्भ में किसी भी महा काव्य ( चरितकाव्य) के स्रोत का विचार करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। यहाँ भी हमें महाकवि रहनु विरचित "पासणाहचरिउ" के स्त्रोत के सन्दर्भ में विचार करना है
"पासणाहचरिङ" के प्रमुख नायक तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के चरित के कुछ प्रमुख अंश हमें सर्वप्रथम आचार्य यतिनृषभ द्वारा प्राकृत भाषा में निबद्ध "तिलोयपण्णत्ती" (त्रिलोक प्रज्ञप्ति) में दृष्टिगोचर होते हैं। करणानुयोग का प्रमुख ग्रन्थ होने के कारण जहाँ लोकालोक विभाग, बुगपरिवर्तन और चतुर्गति आदि का प्रतिपादन किया गया है, वहीं दिगम्बर जैन आगम के श्रुतांग से सम्बन्ध रखने के कारण इसमें तिरेसठ शलाका पुरुषों का भी संक्षिप्त वर्णन किया
40 साहित्यदर्पण: विश्वनाथ 318
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