Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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कर रहे थे, तभी साक्षात् सरस्वती ने प्रकट होकर दर्शन दिए और काव्य सृजन की प्रेरणा दी
सिविर्णतरे दिट्ठ सुयदेवि सुपसण्ण ।
आहासए तुज्झ हउं जाए सुपसण्ण ॥ परिहरहिं मणचित करि भव्बु णिसु कन्नु । खलयणहं मा डरहि भउ हरिउ मइ सव्व ॥ तो देखिवयणेण पडिउवि साणंदु ।
तदक्खणेण सचणाउउ ट्ठिउ जि गय-तंदु ।।33 अर्थात् प्रसन्न मन से युक्त होकर सरस्वती देवी ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। मन की सम्पूर्ण चिन्ताओं को छोड़कर, हे भव्य ! तुम निरन्तर काव्य रचना करो। तुम्हें दुर्जनों से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि भय सम्पूर्ण बुद्धि का हरण कर लेता है। कवि कहता है कि इस प्रकार के प्रेरणामयी सरस्वती के वचनों से प्रतिबुद्ध होकर मैं आनन्दित हो उठा। उसी समय मैं नद्रा टूट जाने से शय्या से उठ पड़ा।
इस प्रकार कवि रइधू ने सरस्वती की कृपा से साहित्य जगत में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया। काव्य सृजन में भट्टारक यश:कीर्ति, खेऊ साहू, कमलसिंह संघवी जैसे तत्कालीन श्रावकगण भी रइधृ को प्रोत्साहित करते रहे, जिससे उन्हें अपनी कवित्व प्रतिभाको कुशलता से मूर्त रूप देने में सफलता मिली। "पासणाहचरिउ' का रचना काल :
"पासणाहचरिउ'' की रचना कवि ने खेऊ साहू के समय में की थी। खेऊ साहू राजा डोंगरेन्द्र (अपरनाम दूंगर सिंह, जो कि गोपचल के राजा थे) के समकालीन थे, इस बात की पुष्टि ''पासणाहचरिउ" से होती है। 34 राजा इंगर सिंह का राज्यकाल वि. सं. 1482 से 1510-. 11 है 35 अतः खेऊ साहू को इसी समय के बीच होना चहिए।
रइधू कृत "सुक्कोसलचरिउ'' में उसका रचना समाप्ति काल वि. वं. 1496 उदिखित है। 36 इस रचना में कवि ने अपनी पूर्व रचित 'रिवणेमिचरिउ', एवं
३३ द्रष्टव्य- सम्मइ0 1/4/2-4 34 पास. 1:4 एवं 115 35 रइधृ.प्रन्थावली, भूमिका भाग, पृ. 17 36 सुकोसलचरिउ 4:23/1-3
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