Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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निवास स्थान का कोई निश्चित उल्लेख नहीं किया है। फिर भी कुछ अन्तक्ष्यि एवं बहिसक्ष्यि ऐसे मिले हैं, जिनसे उनके निवास स्थान के बारे में निर्णय किया जा सकता है। रइधू ने अपने काव्यों में अनेक स्थानों के वर्णन किए, किन्तु गोपाचल27 (ग्वालियर) का जिस तरह वर्णन किया है, वह बिना निकटता के कदापि सम्भव नहीं दिखता। साथ ही अपनी कृतियों के प्रशस्ति खण्डों में जो न्यूनाधिक सूचना भी हैं, उनके आधार पर भी उनका निवास स्थान गोपाचल ही ठरहता हैं। इसके अतिरिक्त भी रइधू कवि होने के साथ-साथ प्रतिष्ठाचार्य भी थे, 'सम्मतगुणणिहाणकव्य" में आये विभिन्न कथनों से इसकी पुष्टि होती है।30 रइधु ने अपने समकालीन प्रतिष्ठित तोमर -वंशी राजाओं, भट्टारकों एवं गोपाचल की प्रकृति सम्पदा, मन्दिरों, दुर्गों आदि का जैसा याथा-तथ्य वर्णन किया है उससे तथा गोपाचल दुर्ग में स्थापित भ, आदिनाथ स्वामी की विशालकाय (57 फूट) मूर्ति के पंच कल्याणक प्रतिष्ठा कारक आचार्य स्वयं होने31 से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि उनको जन्मस्थली और कर्मस्थली गोपाचल (वर्तमान ग्वालियर) ही थी। रइधू द्वारा सृजित साहित्य : ___ महाकवि रइधू कृत रचनायें कितनी है, इसका स्पष्ट उल्लेख किसी एक स्थान पर नहीं मिलता, फिर भी विविभन्न स्रोतों से जो उनकी रचनाओं के सम्बन्ध में उल्लेख मिला है, वह इस प्रकार है :1. मेहेसरचरिउ (अपरनाम आदिपुराण एवं मेघेश्वरचरित) 2. णेमिणाहचरिउ (अपरनाम रिट्ठणेमिचरित एवं हरिवंशपुराण) 3. पासणाहचरिउ (पार्श्वनाथचरित) 4. सम्मइजिणचरिउ (सन्मतिजिनचरित) 5. तिसबिमहापुरिस चरिउ (अपरनाम महापुराण)
. _ _. _ - - - - - . 27 वर्तमान ग्वालियर (म. प्र.) भारत 26 द्रष्टव्य पास.. 113, जीवंधर. 1.2 धत्ता आदि 29 (क) गोवगिर दुग्गमि णिवसंत बहुसुहेण तहिं। सप्मइ. 1/3/9
(ख) पास. 1/2/15-16
(ग) जोत्रंधरचारउ 1/2 एवं 1:31-2 30 द्र. सम्मत्तगुणणिहाणकन्च 1/8. 113. 1/14 एवं 1115 31 Journal of Asiatic society, p,404.A