Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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को अपनाया। एक बार उस सर्प ने हाथी के मस्तक पर काट लिया, जिससे वह मर गया। जीवन की श्रेणियाँ और तदनुसार बदले की भावना से पूर्ण संघर्ष चलता रहा। मरुभूति प्रत्येक जन्म में शान्ति और सदगणों को अर्जित करता गया, जबकि कमठ का जीव बदले की भावना के पाप पङ्क में निमग्न होता रहा। इस प्रकार अच्छाई और बुराई का संघर्ष हुआ, अन्त में अच्छाई की विजय हुई। ___पार्श्वनाथ के उपर्युक्त जीवन चरित को ध्यान में रखकर ही उनकी ऐतिहासिकता खोजने का प्रयास किया गया. जिसके फलस्वरूप यह निश्चित है कि पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। सर्वप्रथम डॉ. हर्मन जेकोबी ने भगवान पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक व्यक्ति प्रमाणित किया।130 डॉ. जेकोबी के इस मत की पुष्टि अनेक विद्वानों ने की। बौद्ध साहित्य को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि बुद्ध से पहले एक निश्थ सम्प्रदाय अस्तित्व में था, निम्न बातों से इसकी पुष्टि होती है131 :
अंगुत्तर निकाय में यह उल्लेख मिलता है कि वप्प नाम का एक शाक्य निर्ग्रन्थों का भक्त था। इसी सत्त की अट्ठकथा में यह निर्देशित है कि यह वप्प बंद्ध का चाचा था। इस वत्त से भी भगवान महावीर के पूर्व निन्ध सम्प्रदाय
का अस्तित्व प्रमाणित होता है। ___ 'मज्झिम निकाय' के महा सिंहनादसुत्त132 में बुद्ध ने अपने प्रारम्भिक कठोर तपस्वी जीवन का वर्णन करते हुए तप के वे चार प्रकार बतलाये हैं, जिनका उन्होंने स्वयं सेवन किया था। वे चार तप हैं - तपस्विता, रुक्षता, जुगुप्सा और प्रविविक्तता तपस्विता का अर्थ है - नग्न रहना, हाथ में ही भिक्षा- भोजन करना, केश-दाढ़ी के बालों को उखाड़ना, कण्टकाकीर्ण स्थल पर शयन करना। रुक्षता का अर्थ है - शरीर पर मैल धारण करना या स्नान न करना। अपने मैल को न अपने हाथ से परिमार्जित करना और न दूसरे से परिमार्जित कराना। जुगुप्सा का अर्थ है - जल की बूंद तक पर दया करना और प्रविविक्तता का अर्थ है । वनों में अकेले रहना।
130 The Sacered Books of The Eası, Vol. XLV, Introduction, P.21. 1३१ चतुष्कनिपात बग्ग - 5 132 मज्झिम निकाय, महासिंहनादसुन्त, . 48-50, प्रकाशक - महाबोधि समा. सारनाथ Kasrusrussessmastases23 Musisterestaustan