Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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द्वितीय परिच्छेद
पासणाहचरिउ का परिचय
पासाहचरिउ के रचयिता रइधू :
"पासणाहचरित' के रचयिता महाकवि रइधू हैं, यह बात निर्विवाद है। महाकवि रइधू ने अपनी सभी रचनायें अपभ्रंश भाषा में लिखीं। यदि अपभ्रंश साहित्य का सम्यक् प्रकार से निरीक्षण किया जाय तो जिस प्रकार की साहित्यिकता, लालित्य, माधुर्य, शब्द शक्तियों का समावेश, अलंकारों की छटा, छन्दों की विविधता, पात्रों के चरित्र-चित्रण में काल्पनिकता से भी अधिक ऐतिहासिकता एवं चरित्रोत्थान की भावना सरल भाषा शैली का समावेश महाकवि रइधू के साहित्य में मिलता है, उसके आगे अन्य कवि रचनाकर वामन के समान दिखाई देने लगते हैं। वास्तव में सहित्य की प्रचुरता और विषयवैविध्य का जो सागर कवि के साथ जुड़ा हुआ है उसके आगे यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो रइधू ने अन्य सभी कवियों लेखकों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। महाकवि रइधू अपभ्रंश साहित्याकाश में एक ऐसे सूर्यवत् सफल रचनाकार हैं, जिन्होंने श्रमण संस्कृति के पावन सिद्धान्तों रूपी अमृत प्रवाह को अपनी रसीली लेखनी से प्रवाहमान बनाया है। यदि उनकी रचनाओं को देखा जाए तो उनके व्यक्तित्व में हमें दार्शनिक, प्रबन्धकार, आचार शास्ववेत्ता-प्रणेता, सृजेता, राजनीति के ज्ञाता एवं समय के साथ चलते हुए भी समय से ऊपर उठने-उठाने की शक्ति के शुभ लक्षणों का समायोजन मिलता है
महाकवि रइधू के प्रमुख प्रबन्धात्मक आख्यानों में से "पासणाहचरिउ" भी एक ऐसी महान रचना है, जिसमें एक साथ ही राजनीति का चक्र, जैन सिद्धान्तों की गंगा, विषयों की विविधता, भाषा का सौष्ठव, नीतिपरक सूक्तियों का .. आधिक्य, पात्रों में समन्वय, न्याय की अन्याय पर विजय, भोग से त्याग का निदर्शन, समकालीन एवं तत्कालीन नीतियों का नियमन, निरीह प्राणियों के प्रति सहिष्णुता, कला एवं संस्कृति आदि के विभिन्न काव्योचित अपरिहार्य तत्त्वों का समुचित समावेश किया गया है।