Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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पालि आगमों में निगण्ठनातपुत्र का वयोवृद्ध तार्थिक के रूप में उल्लेख है। ये पार्श्वनाथ की परम्परा को कुछ विशेषताओं से भी परिचित हैं।
जैनों के तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ, जो कि महावीर या निगण्ठनातपुत्र से 250 वर्ष पूर्व बनारस में हुए, राजा अश्वसेन और उनकी रानी वामा से बनारस में जन्मे थे। उन्होंने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया। सम्मेदशिखर को आजकल पारस नाथ पर्वत कहते हैं।151 जातकों में वाराणसी के ब्रह्मदत्त, उग्गसेन, धनञ्जय, संयम, विरसेन तथा उदय भद राजाओं का वर्णन है152 पार्श्वनाथ उग्रवंश के थे, उग्रवंश का नामकरण उग्गसेन के नाम पर किया गया होगा। विस्ससेन की पहिचान भगवान पार्श्वनाथ के पिता अश्रसेन से की जा सकती है। ब्रह्मदत्त भी जैन राजा था, जिसने अपना सारा जीवन जैनधर्म के लिए समर्पित किया। वप्प (मनोरथपूरणी) जो कि बुद्ध के चाचा थे, पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी थे।
,पालि साहित्य से जैन धर्म के विभिन्ना सिद्धान्तों का परिचय प्राप्त होता है। ये सिद्धान्त अधिक प्राचीन न माने जायें, तो भी इनका सम्बन्ध पार्श्वनाथ और अरिष्टनेमि से है। अंगुतर निकाय में पार्श्वनाथ को पुरिसाजानीय (The distinguished man) के रूप में जाना गया है। 'धर्मोत्तर प्रदीप' में भी पार्श्वनाथ और अरिष्टनेमि का उल्लेख है। चातुर्यामसंवर जो कि सामञफलसुत्त में निगण्ठनाथपुत्त का कहा गया है, यथार्थ में पार्श्वनाथ का उपदेश है। कुछ निगण्ठ, जिनका पालि साहित्य में निर्देश है, प्रत्यक्ष रूप से पार्श्वनाथ के अन्यायी हैं। उदाहरणार्थ- वप्प153 उपालि154 अभय155, अग्निवेस्सायन सच्यक 156, दोघतपस्सी157. असिबन्धकपुत्त गामिनी158, देवनिक 59,
151 महावंश - 10 152 अंगुत्तर निकाय . 1 . 153 अंगुत्तर निकाय - 2 154 मज्झिम निकाय - 1 155 वही 156 वही 157 वहीं 158 संयुत्त निकाय - 4 159 निक या निख एक हो देव है जो अनेक देवों के साथ बुद्ध के पास जाता है और
निगण्ठनातपुत्त की प्रशंसा में एक गीत गाता है।