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६ उत्तरीकरण-सुत्तं
[ 'तस्स उत्तरी'-सूत्र ]
तस्स
उत्तरी-करणेणं, पायच्छित्त-करणेणं, विसोही-करणेणं, विसल्ली-करणेणं,
पावाणं कम्माण निग्घायणट्टाए
ठामि काउस्सग्गं ॥ शब्दार्थतस्स-उसका।
विसोही-करणेणं-विशेष चित्तजिस जीव-विराधनाका प्रतिक्र- शुद्धि करने के लिये। मण किया उसका अनसन्धान ! विसल्ली-करणेणं-चित्तको शल्य करके यह सूत्र कहते हैं ।
(कण्टक) रहित करनेके लिये। उत्तरी-करणेणं-विशेष---आलोच- ।
। पावाणं-कम्माणं-पापकर्मोंका ।
निग्घायणट्टाए-सर्वथा नाश करना और निन्दा करने के लिये। । नके लिये। पायच्छित्त--करणेणं--प्रायश्चित्त ठामि काउस्सग्गं-मैं कायोत्सर्ग करनेके लिये।
करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
जीव-विराधनाका मैंने जो प्रतिक्रमण किया उसका अनुसन्धान करके यह सूत्र कहता हूँ। विशेष-आलोचना और निन्दा करने के लिये, प्रायश्चित्त करने के लिये, विशेष चत्तशुद्धि करनेके लिये, चित्तको
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