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स्पर्श हुआ हो, कष्ट पहुँचाया हो, खेद पहुँचाया हो, भयभीत किये गये हों, एक स्थान से दूसरे स्थानपर फिराये हों अथवा प्राणसे रहित किये हों, और उससे जो विराधना हुई हो तत्सम्बन्धी मेरे सब दुष्कृत मिथ्या हो ।
सूत्र - परिचय -
इस सूत्र का उपयोग सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवन्दन तथा देववन्दन आदिमें होता है ।
चलनेकी क्रिया नीचे देखकर पूर्ण सावधानी से करनी चाहिये और उसमें कोई जीव कुचल न जाय इसका पूरा ध्यान रखना चाहिये । ऐसा करनेपर भी यदि भूल-चूकसे अथवा उपयोगकी न्यूनतासे जाते-आते कोई भी जीव दब गया हो और उसे किसी भी प्रकारका दुःख पहुँचाया हो, तो इस सूत्र से उसका प्रतिक्रमण किया जाता है । छोटी-से-छोटी जीवविराधना को भी दुष्कृत समझना और तदर्थ अप्रसन्न होना, यह इस सूत्रका प्रधान - स्वर है । 'मिच्छामि दुक्कडं' ये तीनों पद प्रतिक्रमणके बीज माने जाते हैं ।
svaranी डिक्कमणके १८२४१२० भेद हैं । वे इस प्रकार हैं :— जीवके ५६३ भेद हैं उनकी विराधना दस प्रकारसे होती है । उसको राग-द्वेष, तीन करण, x तीन योग, + तीन काल, ÷ और अरिहन्त आदि छ: की* साक्षीसे गुणन करनेपर क्रमशः ५६३ X १० × २ × ३ × ३ × ३ x ६ = १८२४१२० भेद होते हैं ।
X करना, कराना और अनुमोदन करना |
+ मन, वचन और काय ।
: भूत, वर्तमान और भविष्य ।
★ अरिहन्त, सिद्ध, साधु, देव, गुरु और आत्मा ।
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