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द्वावशानुप्रेक्षाधिकारः]
[१३ प्राप्तिः, अलाभोऽप्राप्तिश्चैते सर्वेऽप्यनुभूतास्तथा सुखं दुखं चानुभूतं' तथा मानं पूजा, अपमानं परिभवश्चानुभूतमिति ॥७११॥ संसारानुप्रेक्षामुपसंहरन्नाह---
एवं बहुप्पयारं संसार विविहदुक्खथिरसारं।
णाऊण विचितिज्जो तहेव लहुमेव णिस्सारं ॥७१२॥ एवं बहुप्रकारं संसार विविधानि दुःखानि स्थिरः सारो यस्यासौ विविधदुःखस्थिरसारस्तं संसार ज्ञात्वा लघुमेव शीघ्र निःसारं चिन्तयेत् भावयेदिति ॥७१२।। लोकानुप्रेक्षां विवृण्वन्नाह
एगविहो खलु लोपो दुविहो तिविहो तहा बहुविहो वा ।
दम्वेहिं पज्जएहिं य चितिज्जो 'लोयसब्भावं ॥७१३।। षभिरनुयोगद्वारैर्लोकोऽपि ज्ञातव्यः । सामान्येनेकविधः, लोक्यन्त उपलभ्यन्ते पदार्था यस्मिन्निति स लोकः। उधिःस्वरूपेण द्विविधः, ऊवधिस्तिर्यस्वरूपेण विविध उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूपेण वा त्रिविधः, गतिरूपेण चतुर्विधः, अस्तिकायादिभेदेन पंचविधः, षड्द्रव्यस्वरूपेण षड्विधः, पदार्थद्वारेण सप्तविधः, कर्मरूपेणाऽष्टविधः, इत्येवं बहुविधः, द्रव्यः, पर्यायैश्च द्रव्यभेदेन पर्यायभेदेन लोकसद्भावं बहुप्रकारं चिन्तयेत् ध्यायेदिति ॥७१३॥
स
सुख व दुःख तथा मान-पूजा और अपमान-तिरस्कार इन सबका अनुभव किया हुआ है।
संसारानुप्रेक्षा का उपसंहार कहते हैं
गाथार्थ-इस प्रकार नाना दुःखों को स्थिरता के सारभूत इस बहुत भेदरूप संसार को जानकर उसी प्रकार से उसे तत्क्षण निःसाररूप चिन्तवन करो॥७१२॥
आचारवृत्ति विविध प्रकार के दुःखों का स्थायी अवस्था रूप होना ही जिसका सार है ऐसे अनेक भेद रूप इस संसार को समझकर शोघ्र ही 'यह निःसार है'ऐसा चिन्तवन करो
लोकानुप्रेक्षा को कहते हैं
गाथार्थ-वास्तव में लोक एक प्रकार है, दो प्रकार, तीन प्रकार तथा अनेक प्रकार का भी है। इस तरह द्रव्य और पर्यायों के द्वारा लोक के सद्भाव का विचार करे ।।७१३।।
प्राचारवृत्ति-पूर्व कथित छह अनुयोगों के द्वारा लोक को भी जानना चाहिए। सामान्य से लोक एक प्रकार का है, जिसमें पदार्थ अवलोकित होते हैं, उपलब्ध होते हैं, वह लोक है; इस अपेक्षा से लोक एक प्रकार है। ऊर्ध्वलोक और अधोलोक के भेद से दो प्रकार का है। ऊर्व, मध्य और अधोलोक के भेद से तीन प्रकार का है अथवा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वरूप से भी तीन प्रकार का है। चार गति के रूप से चार प्रकार का है। पाँच अस्तिकायों के भेद से पाँच प्रकार का है। छह द्रव्यों के स्वरूप से छह प्रकार का है। सात पदार्थ-तत्त्वों के द्वारा सात प्रकार का है । आठ कर्मों के विकल्प से आठ प्रकार का है, इत्यादि रूप से यह अनेक प्रकार का है। इस तरह द्रव्यों के भेद से तथा पर्यायों के भेद से इस लोक के अस्तित्व का अनेक प्रकार से चिन्तवन करना चाहिए।
१. लोग क
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