Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 370
________________ ३३६ ] थोवा दु तमतमाए अणंतराणंतरे दु चरमासु । होंति असंखिज्जगुणा णारइया छासु पुढवीसु ॥ १२१५ ॥ स्वस्थानगत मल्पबहुत्वमुच्यते-- सप्तमपृथिव्यां नारकाः सर्वस्तोकाः श्रेण्यसंख्येयभागप्रमिताः, श्रेणिद्वितीय वर्गमूलेन खंडिता श्रेणिमात्रा : १ / २ । तेभ्यश्च सप्तमपृथिवीनार केभ्यः षष्ठीपृथिवीनारका असंख्यातगुणाः श्रेणितृतीयवर्ग मूलेनाहतश्रेणिमात्रा: २ / ३ | तेभ्यश्च षष्ठपृथिवीनारकेभ्यः पंचमपृथिबी नारका असंख्यातगुणाः श्रेणिषड्वर्ग' मूलापहतश्रेणिलब्धमात्रा: १ / ६ । तेभ्यश्च पंचमपृथिवीनार केभ्यश्चतुर्थं पृथिवीनारका असंख्यातगुणाः श्रेण्यष्टवर्ग मूलापहतश्रेणिपरिमिता : १/८ । तेभ्यश्चतुर्थ पृथिवीनार केभ्यस्तृतीयपृथिवीनारका असंख्यातगुणाः श्रेणिदशवर्गमूल (पहतश्रेणिलब्धमात्राः १/ २० । तेभ्यस्तृतीयपृथिवीनार केभ्यो द्वितीयपृथिवीनारका असंख्येयगुणाः श्रेणिद्वादशवर्गमूलखण्डितश्रेण्येक भागमात्रा ः १ / १२ । तेभ्यश्च द्वितीयपृथिवीनारकेभ्यः प्रथमपृथिवीनारका असंख्यातगुणा घनांगुलद्वितीयवर्गमूलमात्राः श्रेणयः १/२ । इति ।। १२१५।। तिर्यग्गतावल्पबहुत्वमाह थोवा तिरिया पचेंदिया दु चउरदिया विसेसहिया । इंदिया दुजीवा तत्तो अहिया विसेसेण ॥। १२१६॥ गाथार्थ -सातवीं पृथिवी में नारकी सबसे थोड़े हैं। इस अन्तिम से अनन्तर- अनन्तर छहों पृथिवियों में नारकी असंख्यातगुणे - असंख्यातगुणे होते हैं ॥१२१५ । १. क षष्ठवर्गं । Jain Education International श्राचारवृत्ति-स्वस्थानगत अल्पबहुत्व को कहते हैं सातवीं पृथ्वी में नारकी जीव सबसे थोड़े हैं जो कि श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । अर्थात् श्रेणी के द्वितीय वर्गमूल से भाजित श्रेणी प्रमाण हैं जिसकी संदृष्टि १/२ है । उन सातवीं पृथिवी के नारकियों से असंख्यात [ मूलाचारे अधिक नारकी जीव छठी पृथिवी में हैं जो कि श्रेणी के तृतीय वर्गमूल से भाजित श्रेणीप्रमाण है, उनकी संदृष्टि १ / ३ है । पाँचवीं पृथिवी के नारकी उन छठी पृथिवी के नारकी जीवों से असंख्यातगुणे अधिक हैं । अर्थात् वे श्रेणी के छठे वर्गमूल सेभाजित श्र णीमात्र हैं । उनकी संदृष्टि १ / ६ है । चतुर्थ पृथिवी के नारकी उन पाँचवीं पृथिवी के नारकीयों से असंख्यातगुणे हैं जो श्रेणी के आठवें वर्गमूल से भाजित श्र ेणी प्रमाण हैं और जिनकी संदृष्टि १/८ है । उन चतुर्थ पृथिवी के नारकियों से असंख्यातगुणे अधिक नारको जोव तृतीय पृथिवो में हैं जो कि श्रेणी के दशवें वर्गमूल से भाजित श्र ेणो प्रमाण हैं और जिनकी स दृष्टि १ / १० है । उन तृतीय पृथिवी के नारकियों से असंख्यातगुणे अधिक जीव द्वितीय पृथिवो में हैं जो कि श्रणो के बारहवें वर्गमूल से भाजित श्रेणी के एक भाग मात्र हैं, उनकी संदृष्टि १ / १२ है । उन द्वितीय पृथिवी के नारकियों से असंख्यातगुणे नारकी प्रथम पृथिवी में हैं जो घनांगुल के द्वितीय वर्गमूलमात्र श्रेणीप्रमाण हैं, और उनकी संदृष्टि १/२ है । तिर्यंचगति में अल्पबहुत्व को कहते हैं गाथार्थ-पंचेन्द्रिय तिर्यंच सबसे थोड़े हैं, चौइन्द्रिय जीव उनसे विशेष अधिक हैं, और २. क श्रेण्यष्टमवर्ग । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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