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विद्यते तत्समीपस्था श्रीमती योगिनीपुरी । यां पातिपातिसाहिश्रीर्बहलोलाभिधो नृपः ॥ ८ ॥ तस्याः प्रत्यग्दिशि ख्यातं श्रीहिसारपिरोजकम् । नगरं नगरंभादिवल्लीराजिविराजितम् ॥ ६ ॥ तत्र राज्यं करोत्येष श्रीमान् कुतबखानकः । तथा हैव तिखानश्च दाता भोक्ता प्रतापवान् ॥ १० ॥ arr श्रीमूल संघेऽस्मिन्नन्दिसंघेऽनघेऽजनि । बलात्कारगणस्तत्र गच्छः सारस्वतस्त्वभूत् ॥ ११ ॥ तत्राजनि प्रभाचन्द्रः सूरिचन्द्रो जितांगजः । दर्शनज्ञानचारित्रतपोवीर्यसमन्वितः ॥ १२ ॥
श्रीमान् बभूव मार्तण्डस्तत्पट्टोदयभूधरे । पद्मनन्दी बुधानन्दी तमश्छेदी मुनिप्रभुः ।। १३ । तत्पट्टाम्बुधिसच्चन्द्रः शुभचन्द्रः सतां वरः । पंचाक्षवनदावाग्निः कषायक्ष्माधराशनिः ॥ १४ ॥ तदीयपट्टाम्बरभानुमाली
क्षमा दिनानागुणरत्नशाली । भट्टारक श्रीजिनचन्द्रनामा
सैद्धान्तिकानां भुवि योऽस्ति सीमा ॥ १५ ॥ स्याद्वादामृतपानतृप्त मनसो यस्यातनोत् सर्वतः कीर्तिर्भूमितले शशांकधवला सज्ज्ञानदानात् सतः ।
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कुन्यु और अरनाथ तीर्थंकर हुए थे ॥६-७॥ उस हस्तिनापुर के समीप शोभा सम्पन्न योगिनीपुरी नाम की वह नगरी है जिसकी रक्षा बहलोल नाम का बादशाह करता है ।।८।। उस योगिनीपुरी की पश्चिम दिशा में हिसार पिरोधक नाम का प्रसिद्ध नगर है जो केले आदि के वृक्षों तथा लताओं के समूह से सुशोभित
है ||६|| यहाँ श्रीमान् कुतबलाम तथा दानी, योगी एवं प्रतापी हैवतिखान राज्य करता है ।।१०।।
[मूलाचारे
तदनन्तर इस मूलसंघ और निष्कलंक नन्दिसंघ में बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ हुआ ॥ ११॥ उसमें सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य से सहित कामविजयी प्रभाचन्द्र नाम के आचार्य हुए ॥ १२ ॥ उनके पट्टरूपी उदयाचल पर विद्वज्जनों को हर्षित करनेवाले तथा अज्ञानान्धकार को नष्ट करनेवाले श्रीमान् पचनन्वी नामक मुनिराज हुए ||१३|| उनके पट्टरूपी समुद्र को उल्लसित करने के लिए चन्द्रमा स्वरूप वह शुभचन्द्र हुए जो सज्जनों में श्रेष्ठ, पंचेन्द्रिय रूपी वन को भस्म करने के लिए दावानल और कषाय रूपी पर्वत को नष्ट करने के लिए वज्रस्वरूप थे || १४ || उनके पट्टरूपी आकाश पर सूर्य स्वरूप, तथा क्षमा आदि अनेक गुण-रूपी रत्नों से शोभायमान श्री जिनचन्द्र नामक भट्टारक हुए, जो पृथ्वी में सिद्धान्तश मनुष्यों की मानो सीमा ही थे अर्थात् सिद्धान्त के श्रेष्ठतम ज्ञाता थे ॥ १५ ॥ स्याद्वाद रूपी अमृत के पान से जिनका मन सन्तुष्ट था, जो चार्वाक आदि मतों के प्रवादी मनुष्य रूप अन्धकार को
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