Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 433
________________ प्रशस्तिपाठः) [३९ एतच्छास्त्रादिभक्त्या तैनिदानमदायि च । ब्रह्मश्रीनरसिंहाख्यतिहुणादियतीशिने ।। ५६ ॥ चतुर्विधाय संघाय सदाहारश्चतुर्विधः । प्रादाय्यौषधदानं च वस्त्रोपकरणादि च ।। ५७॥ मित्रयाचकहीनेभ्यः प्रीतितुष्टिकृपादि च । दानं प्रदत्तमित्यादि धन्यव्ययो व्यधायि तैः ।। ५८।। इत्थं सप्तक्षेत्र्यां वपते यो दानमात्मनो भक्त्या। लभते तदनन्तगुणं परत्र सोऽत्रापि पूज्यः स्यात् ।। ५६॥ एतच्छास्त्रलेखयित्वा हिसारादानायय स्वोपाजितेन स्वराया। संघेशश्रीपद्मसिंहेन भक्त्या सिंहान्ताय श्रीनराय प्रदत्तम् ॥ ६० ॥ यो दत्ते ज्ञानदानं भवति हि स नरो निर्झराणां.प्रपूज्यो, भुक्त्वा देवांगनाभिर्विषयसुखमनुप्राप्य मानुष्यजन्म। भुक्त्वा राज्यस्य सौख्यं भवतनुज (?) सुखान्निस्पृहीकृत्य चित्त, लात्वा दोक्षां च बुध्वा श्रुतमपि सकलं ज्ञानमन्त्यं लभेत ॥ ६१ ॥ ज्ञानदानाद्भवेज्ज्ञानी सुखी स्याद्भोजनादिह । निर्भयोऽभयतो जीवो नीरुगौषधदानतः ॥ ६२ ।। धर्मतः सकलमंगलावली धर्मतो भवति मुंडकेवली। धर्मतो जिनसुचक्रभृद्बली नाथतद्रिपुमुखो नरो बली ।। ६३ ॥ प्रतिमाओं के पांच-पांच उपकरण स्थापित किये । ब्रह्मश्री (ब्रह्मचारी) नरसिंह तथा तिहण आदि मुनियों के लिए उन्होंने भक्तिपूर्वक इन मूलाचार आदि शास्त्रों का ज्ञान दान दिया। चतुर्विध संघ के लिए चार प्रकार का उत्तम आहार, औषधदान तथा वस्त्र एवं उपकरणादि दिये ॥५५-५७॥ उन्होंने मित्रों के लिए प्रीतिदान, याचकों को संतुष्टि दान और हीन मनुष्यों को दयादि दान दिये। इस तरह उत्तम व्यय किया ॥५॥ इस प्रकार जो आत्मभक्ति से सात क्षेत्रों में दान देता है वह परभव में प्रदत्त वस्तुओं से अनन्त गुणी वस्तुओं को प्राप्त होता है और इस भव में भी पूज्य होता है ॥५६॥ संघपति श्री पद्मसिंह ने स्वोपार्जित धन से इस मूलाचार शास्त्र को लिखाकर तथा हिसार से बुलाकर भक्तिपूर्वक श्री नरसिंह के लिए प्रदान किया ॥६०॥ जो मनुष्य ज्ञान दान देता है वह देवों का पूज्य होता है, देवांगनाओं के साथ विषय सुख भोगकर कम से मनुष्य जन्म प्राप्त करता है, वहाँ राज्य सुख भोग कर तथा संसार और शरीर सम्बन्धी सुखों से चित्त को निरुत्सक कर दीक्षा ग्रहण करता है और समस्त श्रुत को जानकर अन्तिम ज्ञान केवलज्ञान को प्राप्त होता ॥६॥ ज्ञानदान से जीव ज्ञानी होता है, आहार दान से सुखी होता है, अभय दान से निर्भय होता है और औषध दान से निरोग होता है ॥६२॥ धर्म से समस्त मंगलों का समूह प्राप्त होता है, धर्म से मनुष्य प्रसिद्ध केवली होता है, धर्म से तीर्थकर और चक्रवर्ती होता है, धर्म से ही बलशाली नारायण-प्रतिनारायण तथा बलभद्र आदि होता है ॥६३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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