Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 426
________________ ३६२] [ मूलाचारे स्रग्धरावृत्तम् वत्तिः सर्वार्थसिद्धिः सकलगुणनिधिः सूक्ष्मभावानुवत्तिराचारस्यात्तनीतेः' परमजिनपतेः ख्यातनिर्देशवत्तेः। शुद्धैर्वाम्यैः सुसिद्धा कलिमलमथनी कार्यसिद्धिमुनीनां स्थेयाज्जैनेन्द्रमार्गे चिरतरमवनौ वासुनन्दी शुभा वः ।। इति' मूलाचारविवृतौ द्वादशोऽध्यायः । इति कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतमूलाचाराख्यविवृतिः । कृतिरियं वसुनन्दिनः श्रीश्रमणस्य । सम्पूर्ण अर्थों को सिद्ध करनेवाली, सकल गुणों, निधि, सूक्ष्म भावों को प्रकट करने वाली, जिन्होंने आचार की नीति-पद्धति को प्राप्त कर लिया है और सम्यक्चारित्र का निर्देश किया है ऐसे परम जिनेन्द्रदेव के शुद्ध–निर्दोष वाक्यों से सुसिद्ध, कलि के मल का मथन करने वाली और मुनियों के कार्य को सिद्ध करनेवाली यह वसुनन्दि आचार्य द्वारा रची गयी तात्पर्यवृति नामक टीका चिरकाल तक श्री जिनेन्द्रदेव के शासन में स्थायीभाव को प्राप्त हो और इस पृथ्वीतल पर आप सबके लिए कल्याणकारी हो। इस प्रकार से मूलाचार को विवृत्ति में बारहवां अध्याय पूर्ण हुआ। यह श्री कुन्दकुन्दाचार्य प्रणीत मूलाचार नामक ग्रन्थ को विवृति है और श्री श्रमण वसनन्दि आचार्य की कृति है। १. क स्यानुनीते । २. द इति मूलाचारवृत्तो वसुनन्दिविरचितायां द्वादश परिच्छेदः समाप्तः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -

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