________________
३९६ |
तत्पुत्रो जिनचन्द्रस्य पादपंकजषट्पदः । महाख्यः पण्डितस्त्वस्ति श्रावकव्रतभावकः ॥ २६ ॥ तदन्वयेऽथ खंडेलवंशे श्रेष्ठीय गोत्रके । पद्मावत्याः समाम्नाये यक्ष्याः पार्श्वजिनेशिनः ॥ २७ ॥
Jain Education International
साधुः श्रीमोहणाख्योऽभूत् संघभारधुरंधरः । तत्पुत्रो रावणो नाम पंचाणुव्रतपालकः ।। २८ ।। तस्य पुत्रौ समुत्पन्नौ पार्श्वचोषाभिधानकौ । कल्पवृक्षसमौ दाने जिनपादाब्जषट्पदौ ॥ २६ ॥ साधोः पार्श्वस्य भार्याऽभूदाद्या पद्मिनिसंज्ञिका । पद्मनाभस्य पद्म व सती पद्मानना मता ॥ ३० ॥
होनाम्नी द्वितीयाभूद्या सौभाग्येन पार्वती । रति रूपेण शीलेन सीतां जितवती सती ॥ ३१ ॥
सा, धन्याः सन्ति पद्मिन्यास्त्रयः पुत्रा हितान्वहाः । रूपवन्तः कलावन्तो दयावन्तः प्रियंवदाः ॥ ३२ ॥
तत्राद्यः साधुभीमाख्यो निजवंशविभूषणः । उपार्जयति वित्तं यः पात्रदानाय केवलम् ।। ३३॥
रुक्मिणी नामनी तस्य गेहिनी शीलशालिनी । स्ववाचा कोकिला जिग्ये कान्त्या भा सवितुर्यया ॥ ३४ ॥
चत्वारः सन्ति तत्पुत्रास्तोल्हातेजाभिधानकौ । भोजाषि राजनामानौ प्रफुल्लकमलाननाः ।। ३५ ।।
धारण करनेवाला पुत्र हुआ। यह मीह, जिनचन्द्र आचार्य के चरण कमलों का भ्रमर था ॥ २६ ॥ उसके खण्डेलवाल वंश, श्रेष्ठी गोत्र तथा पार्श्वनाथ भगवान् की यक्षी पद्मावती की आम्नाय में संघ का भार - धारण करनेवाला साहु मोहन नाम का पुत्र हुआ। उसके पाँच अणुव्रतों का पालन करनेवाला एक रावण नाम का पुत्र हुआ ।।२७-२८ ।। रावण के पाश्र्व और चोषा नामक दो पुत्र हुए, जो दान देने में कल्पवृक्ष के समान थे और जिनेन्द्र भगवान् के चरण-कमलों के भ्रमर थे अर्थात् जिनभक्त थे ||२६|| साहु पार्श्व की प्रथम पत्नी का नाम पद्मिनी था । यह कमलमुखी पद्मिनी, विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के समान सती थी ||३०|| साहु पार्श्व की द्वितीय पत्नी सहो नाम की थी । वह सौभाग्य से पार्वती थी । रूप से रति को और शील से सीता को जीतनेवाली थी || ३ || पद्मिनी के हितकारक, रूपवन्त, कलावन्त, दयावन्त और मधुरभाषी भाग्यशाली तीन पुत्र हुए ||३२|| उनमें पहला पुत्र साहु भीम था, जो अपने वंश का आभूषण था तथा पात्रदान के लिए धन का उपार्जन करता था ॥ ३३॥ उसकी रुक्मिणी नाम की शीलवती स्त्री थी । afक्मणी ने अपनी वाणी से कोयल को तथा कान्ति से सूर्य की प्रभा को जीत लिया था ॥ ३४ ॥ उसके चार पुत्र हुए – १. तोल्हा २. तेजा ३. भोज और ४. शिवराज । ये चारों पुत्र खिले हुए कमल के समान मुखवाले
[ मूलाचार
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org