Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 393
________________ पर्याधिकार ] [ ३५९ संज्ञा । येषामुदयेन पुद्गलस्कन्धानां वनितायामाकांक्षा जायते तेषां पुंवेद इति संज्ञा । येषां च पुद्गलस्कन्धानामुदयेनेष्टकाग्निसदृशेन द्वयोराकांक्षा जायते तेषां नपुंसकवेद इति संज्ञा । हसनं हासो, यस्य कर्मस्कन्धस्योदयेन हास्यनिमित्तो जीवस्य राम उत्पद्यते तस्य हास इति संज्ञा, कारणे कार्योपचारात् । रम्यतेऽनयेति रमणं वा रतिः, कुत्सिते रमते येषां कर्म स्कन्धानामुदयेन द्रव्यक्षेत्रकालभावेषु रतिरुत्पद्यते तेषां रतिरिति संज्ञा । न रमते न रम्यते वा यया साऽरतिर्यस्य पुद्गलस्कन्धस्योदयेन द्रव्यादिष्वरतिर्जायते तस्यारतिरिति संज्ञा । शोचन शोचयतीति वा शोकः, यस्य कर्मस्कन्धस्योदयेन शोकः समुत्पद्यते जीवस्य तस्य शोक इति संज्ञा । भीतियंस्माबिभेति वा भयं यः कर्मस्कन्धेरुदयमागतैर्जीवस्य भयमुत्पद्यते तेषां भयमिति संज्ञा । जुगुप्सनं जुगुप्सा येषां कर्मस्कन्धानामुदयेन द्रव्यादिषु जुगुप्सा उत्पद्यते तेषां जुगुप्सेति संज्ञा । एवं नवविधमेव नोकषायवेदनीयं ज्ञातव्यमिति । कषायवेदनीयाख्यभेदास्तुध्वं मेतस्माच्चागमाज्ज्ञातव्या इति ॥। १२३५ ।। आयुषो नाम्नश्च प्रकृतेर्भेदान् प्रतिपादयन्नाह- णिरियाऊ तिरियाऊ माणुसदेवाण होंति प्राऊणी । गदिजाविसरीराणि य बंधणसंघावसंठाणा ॥१२३६॥ की स्त्रीवेद संज्ञा है । जिन पुद्गलस्कन्धों के उदय से स्त्री के प्रति आकांक्षा उत्पन्न होती है उनकी वेद संज्ञा है । जिन पुद्गल स्कन्धों के उदय से ईंट के अवे की अग्नि के सदृश दोनों में आकांक्षा उत्पन्न होती है उनकी नपुंसकवेद संज्ञा है हँसमा हास है। जिस कर्मस्कन्ध के उदय से जीव के हास्य में निमितभूत राग उत्पन्न होता है उसकी हास संज्ञा है । यहाँ पर कारण में कार्य का उपचार किया गया है। जिसके द्वारा रमता है उसका अथवा रमणमात्र का नाम रति है । जिन कर्मरन्धों के उदय से कुत्सित में रमता है या जिनके उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों में रति उत्पन्न होती है। उनका नाम रति है । जमा नहीं है अथवा जिसके द्वारा रति को प्राप्त नहीं किया जाता है वह अरति है । जिस पुद्गलस्कन्ध के उदय से द्रव्य आदि में अरति - अप्रीति उत्पन्न होती है वह भरति है । शोक करना अथवा जो शोक किया जाता है वह शोक है। जिस कर्मस्कन्ध के उदय से जीव के शोक उत्पन्न होता है उसका नाम शोक है। जिस कारण से डरता है उसे भय कहते हैं । अथवा जिन स्कन्धों के उदय में आने पर जीव में भय उत्पन्न होता हैं उन्हें भय कहते हैं । ग्लानि करना जुगुप्सा है। जिन कर्मस्कन्धों के उदय से द्रव्य आदि में ग्लानि उत्पन्न होती है उनका जुगुप्सा यह नाम है । Jain Education International इस तरह नोकषाय वेदनीय के नौ भेद जानना चाहिए। कषाय वेदनीय के भेद तो इसी ग्रन्थ में पूर्व गाथा में कहे जा चुके हैं आयु और नाम कर्म की प्रकृतियों के भेदों का कथन करते हैं गाथार्थ - नरकायु, तिर्यंचायु, मानुषायु और देवायु ये आयु के चार भेद हैं । १. गति, जाति, ३. शरीर, ४. बन्धन, ५. संघात, ६. संस्थान, ७. संहनन, ८. अंगोपांग, ६. वर्ण, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456